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परिशिष्ट : १ अणुण्णानंदी-अनुज्ञानन्दी
मूल पाठ
हिन्दी अनुवाद १. से कि तं अणुण्णा? अणुण्णा छव्विहा पण्णत्ता, तं १. वह अनुज्ञा क्या है ? अनुज्ञा के छह प्रकार प्राप्त हैं, जैसे
जहा-नामाणुण्णा ठवणाणुण्णा दव्वाणुण्णा खेत्ता- नामअनुज्ञा, स्थापनाअनुज्ञा, द्रव्यअनुज्ञा, क्षेत्रअनुज्ञा, कालअनुज्ञा, णुण्णा कालाणुण्णा भावाणुण्णा ॥
भावअनुज्ञा। २. से कि तं नामाणण्णा? नामाणुण्णा-जस्स णं २. वह नामअनुज्ञा क्या है ? नामअनुज्ञा-जिस जीव या जीवस्स वा अजीवस्स वा जीवाण वा अजीवाण वा अजीव का, जीवों या अजीवों का, जीव-अजीव दोनों का, जीवोंतदुभयस्स वा तदुभयाण वा अणुण्ण त्ति णामं अजीवों दोनों का अनुज्ञा यह नाम किया जाता है। वह नामअनुज्ञा
कीरइ । सेत्तं नामाणुण्णा ॥ ३. से कि तं ठवणाणण्णा? ठवणाणण्णा-जं णं ३. वह स्थापना अनुज्ञा क्या है ? स्थापना अनुज्ञा-काष्ठाकृति,
कट्रकम्मे वा पोत्थकमे वा लेप्पकम्मे वा चित्तकम्मे पुस्तक में अंकित चित्र, लेप्याकृति या चित्राकृति में गूंथकर, वेष्टितकर, वा गंथिमे वा वेढिमे वा पूरिमे वा संघातिमे वा भरकर या जोड़कर बनाई हुई पुतली में, अक्ष या कौड़ी में एक या अक्खे वावराडए वा एगे वा अणगे वा सम्भावठ- अनेक सद्भावस्थापना (वास्तविक-आकृति) अथवा असद्भावस्थापना वणाए वा असब्भावठवणाए वा अणुण्ण त्ति ठवणा (काल्पनिक आरोपण) के द्वारा अनुज्ञा का जो रूपांकन या कल्पना की ठविज्जति । सेत्तं ठवणाणुण्णा ॥
जाती है । वह स्थापनाअनुज्ञा है। णाम-ठवणाणं को पतिविसेसो ? णामं आवकहियं, ४. नाम और स्थापना में क्या अन्तर है ? नाम यावज्जीवन होता
ठवणा इत्तिरिया वा होज्जा आवकहिया वा॥ है, स्थापना अल्पकालिक भी होती है और यावज्जीवन भी । ५. से कि तं दव्वाणुण्णा ? दव्वाणुण्णा दुविहा पण्णत्ता, ५. वह द्रव्यअनुज्ञा क्या है ? द्रव्यअनुज्ञा के दो प्रकार प्रज्ञप्त हैं, ___तं जहा- आगमतो य नोआगमतो य ।
जैसे-आगमतः (ज्ञान की अपेक्षा से) और नोआगमतः (ज्ञानाभाव
और क्रिया की अपेक्षा से)। ६. से कितं आगमतो दवाणण्णा? आगमतो दव्वा- ६. वह आगमतः द्रव्यअनुज्ञा क्या है? आगमतः द्रव्यअनुज्ञा
णुण्णा -जस्स णं अणुण्ण त्ति पदं सिक्खियं ठियं जियं जिसने अनुज्ञा यह पद सीख लिया, स्थिर कर लिया, चित (स्मृतिमियं परिजियं नामसमं घोससमं अहीणक्खरं योग्य) कर लिया, मित (श्लोक आदि की संख्या से निर्धारित) कर अणच्चक्खरं अव्वाइद्धक्खरं अक्खलियं अमिलियं लिया, परिचित कर लिया, नामसम (अपने नाम के समान) कर अविच्चामेलियं पडिपुण्णं पडिपुण्णघोसं कंठोट्ठविप्प- लिया, घोषसम (सही उच्चारणयुक्त) कर लिया, जिसे वह हीन, मुक्कं गुरुवायणोवगयं से णं तत्थ वायणाए पुच्छणाए अधिक और विपर्यस्त अक्षर रहित, अस्खलित, अन्य वर्णों से अमिश्रित, परियट्टणाए धम्मकहाए, नो अणुप्पेहाए।
अन्य ग्रन्थ वाक्यों से अमिश्रित, प्रतिपूर्ण, प्रतिपूर्णघोषयुक्त, कण्ठ और कम्हा? अणुवओगो वव्वं इति कटु ।
होठ से निकला हुआ तथा जिसे गुरु की वाचना से प्राप्त किया जाता है वह अनुज्ञापद के अध्यापन, प्रश्न, परावर्तन और धर्मकथा में प्रवृत्त होता है तब आगमतः द्रव्यअनुज्ञा है। वह अनुप्रेक्षा (अर्थ के अनुचिन्तन) में प्रवृत्त नहीं होता क्योंकि द्रव्य निक्षेप अनुपयोग (चित्त की की प्रवृत्ति से शून्य) होता है ।
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