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आमुख
प्रस्तुत प्रकरण में आगम सूत्रों की लम्बी तालिका प्राप्त है । आगम के मुख्य दो वर्ग हैं-अङ्गप्रविष्ट और अङ्गबाह्य । अङ्गप्रविष्ट का वर्णन समवाओ में प्राप्त है।' अङ्गबाह्य का विवरण उसमें नहीं है । स्थानाङ्ग में अङ्गवाह्य का संक्षिप्त उल्लेख है"श्रुतज्ञान के दो प्रकार हैं
१. अङ्गप्रविष्ट २. अङ्ग वाह्य। अङ्ग बाह्य दो प्रकार का है१. आवश्यक २. आवश्यकव्यतिरिक्त। आवश्यक व्यतिरिक्त दो प्रकार का है१. कालिक-जो दिन-रात के प्रथम और अन्तिम प्रहर में ही पढ़ा जा सके। २. उत्कालिक जो अकाल के सिवाय सभी प्रहरों में पढ़ा जा सके।
तत्त्वार्थसूत्र में अङ्ग बाह्य के तेरह ग्रन्थों का उल्लेख है।' कषायपाहुड़ में चौदह ग्रन्थों का उल्लेख है। प्रस्तुत आगम में अङ्गबाह्य आगमों की तालिका सबसे बड़ी है। व्यवहार सूत्र में क्षुल्लिकाविमानप्रविभक्ति, महतीविमानप्रविभक्ति, अङ्गचलिका, वर्गचूलिका, ब्याख्या चूलिका, अरुणोपपात, वरुणोपपात, गरुडोपपात, धरणोपपात, वैश्रमणोपपात, बेलंधरोपपात, उत्थानश्रुत, समुत्थानश्रुत, देवेन्द्रोपपात, नागपर्यापनिका-इनका उल्लेख है। शेष आगम ग्रन्थों के नाम प्रस्तुत आगम (नंदी) में ही मिलते हैं।
द्वादशाङ्गी के ग्यारह अङ्ग वर्तमान में उपलब्ध हैं । दृष्टिवाद वर्तमान में अनुपलब्ध है। उसकी अनुपलब्धि विशाल ज्ञान राशि के विलोप का हेतु बन गई । चौदह पूर्व उपलब्ध नहीं रहे किन्तु उनके कुछ अंश उपलब्ध रहे, उनका समावेश अडों अथवा अन्य ग्रन्थों में हो गया । बहुत सारे आगम ग्रन्थों तथा उत्तरवर्ती ग्रन्थों में पूर्वो से उद्धृत अथवा नियंढ होने का उल्लेख मिलता है। दृष्टिवाद का विवरण उपलब्ध है उसके आधार पर दृष्टि वाद की रूपरेखा तैयार की जा सके तो बहुत बड़ा कार्य हो सकता है, किंतु उसके लिए बहुत श्रम, अनुसंधान और समय की अपेक्षा है। किंतु यह कार्य अवश्य करणीय है। प्रस्तुत आगम (नंदी) और उसके व्याख्या ग्रन्थ द्वादशाङ्गी की रूपरेखा को तैयार करने में काफी उपयोगी हो सकते हैं ।
१. समवाओ, प्रकीर्णक समवाय, ८८ से १३४ २. ठाणं, २१०४ से १०६ ३. तत्त्वार्थाधिगमसूत्रम्, १२०
४. कषायपाहुड, पृ. २५ ५. नवसुत्ताणि, ववहारो, १०१३० से ३२
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