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नंदी
नियुक्ति
आगम के व्याख्या ग्रन्थों की अनेक शैलियां हैं उनमें सबसे पहली शली नियुक्ति है । इसके द्वारा आगम के पदों का निर्वचन किया जाता है। अनुयोगद्वार में इसके तीन प्रकार बतलाए गए हैं-'
१. निक्षेपनियुक्ति २. उपोद्घातनियुक्ति
३. सूत्रस्पशिकनियुक्ति प्रतिपत्ति
प्रतिपत्ति के अनेक अर्थ होते हैं। चूर्णिकार तथा वृत्तिकारों ने इसके दो अर्थ किए हैं"-- १. द्रव्य आदि पदार्थों का अभ्युपगम २. प्रतिमा, अभिग्रह।
ये प्रतिपत्तियां सूत्र में निबद्ध हैं। श्रुतस्कन्ध
आचाराङ्ग के दो श्रुतस्कन्ध हैं । प्रथम श्रुतस्कन्ध प्राचीन है। दूसरा श्रुतस्कन्ध उत्तरकालीन है। उसकी प्रथम श्रुतस्कन्ध की चूला के रूप में स्थापना की गई है और उसके निर्यहण का भी उल्लेख किया गया है।" अध्ययन
आचाराङ्ग के नौ अध्ययन हैं। इनमें 'महापरिज्ञा' नामक सातवां अध्ययन व्युच्छिन्न है । आचारचूला के सोलह अध्ययन हैं । आचाराङ्ग की पांच चूलाएं हैं। पांचवीं चूला निशीथ है, वह यहां विवक्षित नहीं है। आवश्यक सूत्र में आचारप्रकल्प के अट्ठाईस अध्ययन बतलाए गए हैं। यहां निशीथ के तीन अध्ययनों को छोड़कर शेष पच्चीस अध्ययनों का निरूपण है। उद्देशन काल
अध्ययन के लिए ग्रन्थांश और कालांश की समुचित व्यवस्था की जाती थी, वह उद्देशनकाल है। उदाहरणस्वरूप-आचार्य शिष्य को आचाराङ्ग सूत्र पढाते हैं, पहला पाठ होता है-अङ्ग, श्रुतस्कन्ध, अध्ययन और उद्देशक का बोध कराना । यह एक उद्देशनकाल है । इस प्रकार पूर्ण ग्रन्थ के अध्ययन की व्यवस्था की जाती थी।
चूर्णिकार तथा वृत्तिकारों ने ८५ उद्देशनकालों को इस प्रकार विभक्त किया है --- अध्ययन
उद्देशनकाल I १. शस्त्रपरिज्ञा
२. लोकविजय ३. शीतोष्णीय ४. सम्यक्त्व ५. लोकसार (आवती) ६.धुत ७. महापरिज्ञा ८. विमोक्ष
९. उपधानश्रुत १. हारिभद्रीया वृत्ति, पृ. ७६ : निर्युक्तानां युक्तिनियुक्तयुक्ति
सखेज्जा। रिति वाच्ये युक्तशब्दलोपान्नियुक्तिरिति ।
(ख) हारिभद्रीया वृत्ति, पृ. ७६ २. अणुओगदाराइं, सू. ७१० से ७१४
(ग) मलयगिरीया वृत्ति, प. २१० ३. आप्टे-obeservation, perception, acceptance, ५. आयारो तह आयारचूला, भूमिका, पृ. ९-११ acknowledgement etc.
६. (क) नन्दी चूणि, पृ. ६२ ४. नन्दी चणि, पृ. ६२ : दन्वादिपदत्थभवगमो पडिमा
(ख) हारिभद्रीया वृत्ति, पृ० ७६ ऽभिग्गहविसेसा य पडिवत्तीओ, ते समासतो सुत्तपडिबद्धा
(ग) मलयगिरीया वृत्ति, प. २११
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