Book Title: Agam 31 Chulika 01 Nandi Sutra Nandi Terapanth
Author(s): Tulsi Acharya, Mahapragna Acharya
Publisher: Jain Vishva Bharati

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Page 169
________________ १४४ नंदी से एवं आया, एवं नाया, एवं स एवमात्मा, एवं ज्ञाता, एवं विण्णाया, एवं चरण-करण-परू- विज्ञाता, एवं चरण-करण-प्ररूपणा वणा आघविज्जइ। सेत्तं अंतगड- आख्यायते । ताः एता: अन्तकृतदशाः । दसाओ॥ इस प्रकार अन्ततका अध्ये ता आत्माअन्तकृत में परिणत हो जाता है। वह इस प्रकार ज्ञाता और विज्ञाता हो जाता है । इस प्रकार अन्तकृत में चरण-करण की प्ररूपणा का आख्यान किया गया है। वह अन्तकृतदशा ८६.से कि तं अणुतरोववाइय- अथ काः ताः अनुत्तरोपपातिक- ८९. वह अनुत्तरोपपातिकदशा क्या है ? दसाओ ? अणुत्तरोववाइयदसासु दशाः । अनुत्तरोपपातिकदशासु अनु- ____ अनुत्तरोपपातिकदशा में अनुत्तरोपपातिक णं अणुत्तरोववाइयाणं नगराई, तरोपपातिकानां नगराणि, उद्यानानि, मनुष्यों के नगर, उद्यान, चैत्य, वनखण्ड, उज्जाणाई, चेइयाइं, वणसंडाई, चैत्यानि, वनषण्डानि, समवसरणानि, समवसरण, राजा, माता-पिता, धर्माचार्य, समोसरणाई, रायाणो, अम्मा- राजानः, मातापितरः, धर्माचार्याः, धर्मकथा, ऐहलौकिक-पारलौकिक ऋद्धिपियरो, धम्मायरिया, धम्म- धर्मकथाः, ऐहलौकिक-पारलौकिकाः विशेष, भोग परित्याग, प्रव्रज्या, पर्याय, श्रुतकहाओ, इहलोइय-परलोइया ऋद्धिविशेषाः, भोगपरित्यागाः, परिग्रह, तपउपधान, प्रतिमा, उपसर्ग, इडिढविसेसा, भोगपरिच्चागा- प्रव्रज्याः, पर्यायाः, श्रुतपरिग्रहाः, संलेखना, भक्तप्रत्याख्यान, प्रायोपगमन, पव्वज्जाओ, परिआगा, सुय- तपउपधानानि, प्रतिमाः, उप- अनुत्तरविमान के देवों के रूप में उत्पत्ति, परिग्गहा, तवोवहाणाई, पडि- सर्गाः, संलेखनाः, भक्तप्रत्याख्यानानि, सुकुल में पुनरागमन, पुनर्बोधिलाभ और माओ, उवसग्गा, संलेहणाओ, प्रायोपगमनानि, अनुत्तरोपपातिकत्वे अन्तक्रिया आदि का आख्यान किया गया है। भत्तपच्चक्खाणाई, पाओवगमणाई, उपपत्तिः, सुकुलप्रत्यायातीः, पुनर्बोधिअणत्तरोववाइयत्ते उववत्ती, लाभाः, अन्तक्रियाः च आख्यायन्ते। सुकुलपच्चायाईओ, पुणबोहिलाभा, अंतकिरियाओ य आघविज्जति । अणुत्तरोववाइयदसाणं परिता अनुत्तरोपपातिकदशासु परीताः अनुत्तरोपपातिकदशा में परिमित वाचनाएं, वायणा, संखेज्जा अणओगदारा, वाचनाः, संख्येयानि अनुयोगद्वाराणि, संख्येय अनुयोगद्वार, संख्येय वेढा (छंदसंखेज्जा वेढा, संखेज्जा सिलोगा, संख्येयाः वेष्टाः, संख्येयाः श्लोकाः, विशेष), संख्येय श्लोक, संख्येय नियुक्तियां, संखेज्जाओ निज्जुत्तीओ, संखेज्जाओ संख्येयाः निर्युक्तयः, संख्येयाः संग्रहण्यः, संख्येय संग्रहणिया और संख्येय प्रतिपत्तियां संगहणीओ, संखेज्जाओ पडिव- संख्येयाः प्रतिपत्तयः । तीओ। से णं अंगट्टयाए नवमे अंगे, एगे तद् अङ्गार्थतया नवमम् वह अंगों में नवम अंग है। उसके एक सुयक्खंधे, तिणि वग्गा, तिणि अंगम्, एकः श्रुतस्कन्धः, त्रयो वर्गाः श्रुतस्कन्ध, तीन वर्ग, तीन उद्देशन-काल, तीन उद्देसणकाला, तिणि समुद्देसणत्रयः उद्देशनकालाः, त्रयः समुद्देशन समुद्देशन-काल, पदपरिमाण की दृष्टि से काला, संखेज्जाई पयसहस्साई कालाः, संख्येयानि पदसहस्राणि पदा संख्येय हजार पद, संख्येय अक्षर, अनन्तगम, पयग्गेणं, संखेज्जा अक्खरा, अणंता ग्रेण, संख्येयानि अक्षराणि, अनन्ताः अनन्त पर्यव हैं। उसमें परिमित बस, अनन्त गमा,अणंता पज्जवा, परित्ता तसा, गमाः, अनन्ताः पर्यवाः, परीताः प्रसाः स्थाबर, शाश्वत-कृत-निबद्ध-निकाचित अणंता थावरा, सासय-कड-निबद्धअनन्ताः स्थावराः, शाश्वत-कृत-निबद्ध जिनप्रज्ञप्त भावों का आख्यान, प्रज्ञापन, निकाइया जिणपण्णत्ता भावा निकाचिताः जिनप्रज्ञप्ताः भावाः प्ररूपण, दर्शन, निदर्शन और उपदर्शन किया आघविज्जंति पण्णविज्जंति परू- आख्यायन्ते प्रज्ञाप्यन्ते प्ररूप्यन्ते गया है। विज्जंति दंसिज्जति निदंसिज्जति दर्श्यन्ते निदर्श्यते उपदय॑न्ते । उवदंसिज्जंति। से एवं आया, एवं नाया, एवं स एवमात्मा, एवं ज्ञाता, एवं इस प्रकार अनुत्तरोपपातिक का अध्येता विण्णाया, एवं चरण-करण-परू- विज्ञाता, एवं चरण-करण-प्ररूपणा आत्मा-अनुत्तरोपपातिक में परिणत हो हैं। Jain Education Intemational ducation Intermational For Private & Personal use only For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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