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जीवाजीवा सूइज्जंति । ससमए सूच्यन्ते । स्वसमयः सूच्यते, परसमयः सूइज्जइ, परसमए सूइज्जइ, सस- सूच्यते, स्वसमय-परसमयः सूच्यते।। मय-परसमए सूइज्जइ।
नंदी सूचना तथा जीव-अजीव-दोनों की सूचना की गई है। स्वसमय की सूचना, परसमय की सूचना तथा स्वसमय-परसमय-दोनों की सूचना की गई है।
सूत्रकृत में एक सौ अस्सी क्रियावादियों, चौरासी अक्रियावादियों, सड़सठ अज्ञानवादियों तथा बत्तीस बैनयिकवादियों-इस प्रकार तीन सौ तिरसठ प्रावादुकों का निरसन कर स्वसमय की स्थापना की गई है।
सूत्रकृत में परिमित वाचनाएं, संख्येय अनुयोगद्वार, संख्येय वेढा (छंद-विशेष), संख्येय श्लोक, संख्येय नियुक्तियां और संख्येय प्रतिपत्तियां हैं।
सूयगडे णं आसीयस्स किरिया- सूत्रकृते आशीतस्य क्रियावादिवाइ-सयस्स, चउरासीइए अकिरि- शतस्य, चतुरशीतेः अक्रियावादिनां, यावाईणं, सत्तट्ठीए अण्णाणिय- सप्तषष्टे: अज्ञानिकवादिनां, द्वात्रिंशतः वाईणं, बत्तीसाए वेणइयवाईणं- वैनयिकवादिनांत्रयाणां त्रिषष्ठः तिण्हं तेसट्ठाणं पावादुय-सयाणं । प्रावादुक-शतानां व्यूहं कृत्वा स्वसमयः वहं किच्चा ससमए ठाविज्जइ। स्थाप्यते।
सूयगडे णं परित्ता वायणा, सूत्रकृते परीताः वाचनाः, संखेज्जा अणओगदारा, संखेज्जा संख्येयानि अनुयोगद्वाराणि, संख्येयाः वेढा, संखेज्जा सिलोगा, संखेज्जा- वेष्टाः, संख्येयाः श्लोकाः, संख्येयाः ओ निज्जुत्तीओ, संखेज्जाओ निर्यक्तयः, संख्येयाः प्रतिपत्तयः। पडिवत्तीओ।
से णं अंगठयाए बिइए अंगे, तद् अंगार्थतया द्वितीयम् अंगम्, दो सयक्खंधा, तेवीसं अज्झयणा, दोश्रतस्कन्धौ, त्रयोविंशतिः अध्ययतेत्तीसं उद्देसणकाला, तेत्तीसं समु- नानि, त्रयस्त्रिशद् उद्देशनकालाः, इसणकाला, छत्तीसं पयसहस्साणि त्रयस्त्रिंशत् समुद्देशनकालाः, षट्त्रिंशत् पयग्गेणं, संखेज्जा अक्खरा, अणंता पदसहस्राणि पदाग्रेण, संख्येयानि गमा, अणंता पज्जवा, परित्ता अक्षराणि, अनन्ताः गमाः, अनन्ताः तसा, अणंता थावरा, सासय-कड- पर्यवाः, परीताः प्रसाः, अनन्ताः निबद्ध-निकाइया जिणपण्णत्ता स्थावराः, शाश्वत-कृत-निबद्ध-निकाभावा आघविज्जंति पण्णविज्जति चिताः जिनप्रज्ञप्ताः भावाः आख्यायन्ते परूविज्जति दंसिज्जति निदं
प्रज्ञाप्यन्ते प्ररूप्यन्ते दर्श्यन्ते निदर्श्यन्ते सिज्जति उवदंसिज्जति ।
उपदर्श्यन्ते । से एवं आया, एवं नाया, एवं
स एवमात्मा, एवं ज्ञाता, विण्णाया, एवं चरण-करण-पह- एवं विज्ञाता, एवं चरण-करण-प्ररूपणा वणा आघविज्जइ । सेत्तं सूय- आख्यायते । तदेतत् सूत्रकृतम् । गडे॥
वह अंगों में दूसरा अंग है। उसके दो श्रुतस्कन्ध, तेईस अध्ययन, तेतीस उद्देशनकाल, तेतीस समुद्देशन-काल, पद परिमाण की दृष्टि से छत्तीस हजार पद, संख्येय अक्षर, अनन्त गम और अनन्त पर्यव हैं। उसमें परिमित त्रस, अनन्त स्थावर, शाश्वतकृत-निबद्ध-निकाचित जिनप्रज्ञप्त भावों का आख्यान, प्रज्ञापन, प्ररूपण, दर्शन, निदर्शन और उपदर्शन किया गया है।
इस प्रकार सूत्रकृत का अध्येता आत्मा-- सूत्रकृत में परिणत हो जाता है । वह इस प्रकार ज्ञाता और विज्ञाता हो जाता है। इस प्रकार सूत्रकृत में चरण-करण की प्ररूपणा का आख्यान किया गया है। वह सूत्रकृत
५३. से किं तं ठाणे? ठाणे णं जीवा
अथ किं तत् स्थानम् ? स्थाने ८३. वह स्थान क्या है ? ठाविज्जति, अजीवा ठाविज्जति, जीवाः स्थाप्यन्ते, अजीवाः स्थाप्यन्ते, स्थान में जीवों की स्थापना अजीवों की जीवाजीवा ठाविज्जंति । ससमए जीवाजीवाः स्थाप्यन्ते । स्वसमयः स्थापना तथा जीव-अजीव-दोनों की ठाविज्जइ, परसमए ठाविज्जइ, स्थाप्यते, परसमयः स्थाप्यते, स्वसमय- स्थापना की गई है। स्वसमय की स्थापना, ससमय-परसमए ठाविज्जइ। लोए परसमयः स्थाप्यते। लोकः स्थाप्यते, परसमय की स्थापना तथा स्वसमय-परसमय ठाविज्जइ, अलोए ठाविज्जइ, अलोकः स्थाप्यते, लोकालोकः -दोनों की स्थापना की गई है। लोक की लोयालोए ठाविज्जइ। स्थाप्यते ।
स्थापना, अलोक की स्थापना तथा लोक
अलोक-दोनों की स्थापना की गई है। ठाणे णं टंका, कडा, सेला, स्थाने टङ्कानि, कूटानि, शैलाः, स्थान में टंक-छिन्नतट, कूट-शिखर, सिहरिणो, भारा, कंडाई, शिखरिणः, प्रारभाराः, कुण्डानि, पर्वत, शिखर वाले पर्वत, प्राग्भार-पर्वत का
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