Book Title: Agam 31 Chulika 01 Nandi Sutra Nandi Terapanth
Author(s): Tulsi Acharya, Mahapragna Acharya
Publisher: Jain Vishva Bharati
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पांचवां प्रकरण : द्वादशांग विवरण : सूत्र ८५,८६
१४१ पयसहस्साई पयग्गेण, संखेज्जा सहस्राणि पदाग्रेण संख्येयानि अनन्त गम और अनन्त पर्यव हैं। उसमें अक्खरा, अणंता गमा, अणंता अक्षराणि, अनन्ताः गमाः, अनन्ताः परिमित त्रस, अनन्त स्थावर, शाश्वत-कृतपज्जवा, परित्ता तसा, अणंता पर्यवाः, परीताः प्रसाः, अनन्ताः निबद्ध-निकाचित जिनप्रज्ञप्त भावों का थावरा, सासय-कड-निबद्ध-निका- स्थावराः, शाश्वत-कृत-निबद्ध-निका- आख्यान, प्रज्ञापन, प्ररूपण, दर्शन, निदर्शन इया जिणपण्णत्ता भावा आघ- चिताः जिनप्रज्ञप्ताः भावाः आख्या- और उपदर्शन किया गया है। विज्जति पण्णविज्जंति परू- यन्ते प्रज्ञाप्यन्ते प्ररूप्यन्ते दर्श्यन्ते विज्जंति दंसिज्जति निदंसिज्जति निदर्श्यन्ते उपदयन्ते । उवदंसिज्जंति।
से एवं आया, एव नाया, एवं स एवमात्मा, एवं ज्ञाता, एवं इस प्रकार व्याख्या का अध्येता आत्माविण्णाया, एवं चरण-करण- विज्ञाता, एवं चरण-करण-प्ररूपणा व्याख्या में परिणत हो जाता है। वह इस परूवणा आघविज्जइ । सेतं आख्यायते । सा एषा व्याख्या । प्रकार ज्ञाता और विज्ञाता हो जाता है। इस वियाहे ।।
प्रकार व्याख्या में चरण-करण की प्ररूपणा
का आख्यान किया गया है। वह व्याख्या है। ८६. से किं तं नायाधम्मकहाओ ? अथ काः ताः ज्ञातधर्मकथाः ? ८६. वह ज्ञातधर्मकथा क्या है ? नायाधम्मकहासु णं नायाणं ज्ञातधर्मकथासु ज्ञाताना नगराणि,
ज्ञातधर्मकथाओं में ज्ञात में निर्दिष्ट नगराई, उज्जाणाई, चेइयाई, उद्यानानि, चैत्यानि, वनषण्डानि,
व्यक्तियों के नगर, उद्यान, चैत्य, वनखण्ड, वणसंडाई, समोसरणाई, रायाणो, समवसरणानि, राजानः, मातापितरः,
समवसरण, राजा, माता-पिता, धर्माचार्य, अम्मापियरो, धम्मायरिया, धम्म- धर्माचार्याः धर्मकथाः ऐहलौकिक
धर्मकथा, ऐहलौकिक-पारलौकिक ऋद्धिकहाओ, इहलोइय-परलोइया पारलौकिकाः ऋद्धिविशेषाः, भोग
विशेष, भोग परित्याग, प्रव्रज्या, पर्याय, श्रुत इढिविसेसा, भोगपरिच्चाया, परित्यागाः, प्रव्रज्याः, पर्यायाः, श्रुत
परिग्रह, तपउपधान, संलेखना, भक्तपव्वज्जाओ, परिआया, सुय- परिग्रहाः, तपउपधानानि, संलेखनाः,
प्रत्याख्यान, प्रायोपगमन, देवलोकगमन, सुकुल परिग्गहा, तवोवहाणाई, संलेह- भक्तप्रत्याख्यानानि, प्रायोपगमनानि,
में पुनरागमन, पुनधिलाभ और अन्तक्रिया णाओ, भतपच्चक्खाणाई, पाओ- देवलोकगमनानि, सुकुलप्रत्यायातीः,
आदि का आख्यान किया गया है। वगमणाई, देवलोगगमणाई. पुनर्बोधिलाभाः, अन्तक्रियाश्च सुकुलपच्चायाईओ, पुणबोहि- आख्यायन्ते । लाभा, अंतकिरियाओ य आघविज्जति। दस धम्मकहाणं वगा। तत्थ दश धर्मकथानां वर्गाः । तत्र
धर्मकथाओं का वर्गीकरण इस प्रकार णं एगमेगाए धम्मकहाए पंच पंच एकैकस्यां धर्मकथायां पञ्च पञ्च
है-धर्मकथा के दस वर्ग हैं । एक-एक धर्म
कथा की पांच-पांच सौ आख्यायिका हैं। अक्खाइयासयाई । एगमेगाए आख्यायिकाशतानि । एकैकस्याम अक्खाइयाए पंच पंच उवक्खाइ- आख्यायिकायां पञ्च पञ्च उपाख्या
एक-एक आख्यायिका की पांच-पांच सौ यासयाई। एगमेगाए उवक्खाइयाए यिकाशतानि । एककस्याम् उपाख्या
उपाख्यायिका हैं । एक-एक उपाख्यायिका की पंच पंच अक्खाइओवक्खाइया- यिकायां पञ्च पञ्च आख्यायिका- पांच-पांच सौ आख्यायिका-उपाख्यायिका हैं। सयाईएवमेव सपुव्वावरेणं उपाख्यायिकाशतानि-एवमेव सपूर्वा- इन सबका पूर्वापर गुणा करने से साढे तीन अट्ठाओ कहाणगकोडीओ हवंति परेण 'अट्ठाओ' कथानककोट्यः
करोड़ की संख्या होती हैं। ति मक्खायं ।
भवन्तीति आख्यातम् । नायाधम्मकहाणं परित्ता ज्ञातधर्मकथायाः परीता: वाचनाः, ___ज्ञातधर्मकथा में परिमित वाचनाएं, वायणा, संखेज्जा अणुओगदारा, संख्येयानि अनुयोगद्वाराणि, संख्येयाः संख्येय अनुयोगद्वार, संख्येय वेढा(छंद-विशेष), संखेज्जा वेढा, संखेज्जा सिलोगा, वेष्टाः, संख्येयाः श्लोकाः, संख्येयाः संख्येय श्लोक, संख्येय नियुक्तियां, संख्येय संखेज्जाओ निज्जुत्तीओ, निर्युक्तयः संख्येयाः संग्रहण्यः, संग्रहणियां और संख्येय प्रतिपत्तियां हैं। संखेज्जाओ संगहणीओ, संखेज्जाओ संख्येयाः प्रतिपत्तयः। पडिवत्तीओ।
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