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'अक्खरसमासावरणीयं' का उल्लेख है ।' अक्षर के तीन प्रकार और उसकी व्याख्या धवला में मिलती है। हो सकता है यह विषय ज्ञानप्रवाद पूर्व की परम्परा से आया हो । त्रिविध अक्षर की व्याख्या धवला में विस्तार से मिलती है उतनी नंदी सूत्र की व्याख्याओं में विस्तार से उपलब्ध नहीं है।
स्थानात सूत्र में संज्ञा के चार प्रकार' तथा दस प्रकार उपलब्ध है। किंतु उनमें समनस्क और अमनस्क की भेद करने वाली संज्ञा का उल्लेख नहीं है। प्रस्तुत आगम में कालिकी आदि तीन प्रकार की संज्ञाओं का निर्देश कर समनस्क और अमनस्क के बीच स्पष्ट भेद रेखा खींची गई है।
१. षट्खण्डागम, पुस्तक १३, पृ. २६१ २. वही, पु. १३, पृ. २६२
३. ठाणं, ४१५७८ ४. वही, १०१०५
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