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नंदी
उप्पत्तिया वेणइया, कम्मया पारिणामिया। बुद्धी चउन्विहा वुत्ता, पंचमा नोवलब्भई ॥१॥
औत्पत्तिकी बनयिकी, कर्मजा पारिणामिकी। बुद्धिश्चतुर्विधोक्ता, पञ्चमी नोपलभ्यते ॥
१. १. औत्पत्तिकी २. वनयिकी ३. कर्मजा ४. पारिणामिकी ।
बुद्धि चार प्रकार की कही गई है। पांचवां प्रकार उपलब्ध नहीं है।
उप्पत्तिया बुद्धिपुवमदिट्ठमसुयमवेइयतक्खणविसुद्धगहियत्था। अव्वाय-फलजोगा, बद्धी उप्पत्तिया नाम ॥२॥
औत्पत्तिकी बुद्धिः
पूर्वमदृष्टाऽश्रुताऽवेदिततत्क्षणविशुद्धगृहीतार्था । अव्याहत-फलयोगा, बुद्धिरौत्पत्तिको नाम ॥
औत्पत्तिको बुद्धि२. पहले अदृष्ट, अश्रुत, अनालोचित अर्थ का तत्क्षण यथार्थ रूप से ग्रहण करने वाली है, जो प्रयोजन युक्त है और किसी दूसरे प्रयोजन से अव्याहत है उस बुद्धि का नाम औत्पत्तिकी
३. १. भरतशिला २. शर्त ३. वृक्ष ४. मुद्रिका ५. वस्त्र-खंड ६. गिरगिट ७. काग ८. उत्सर्ग ९. हाथी १०. भांड ११. लाख १२. खंभा १३. क्षुल्लक १४. मार्ग १५. स्त्री १६. पति १७. पुत्र ।
१. भरहसिल २. पणिय ३. रुक्खे, १. भरतशिला २. पणित ३. रूक्षाः, ४. खुडुग ५. पड ६. सरड ४. 'खुड्डग' ५. पट ६. सरट ७. काय ८. उच्चारे ।
७,८ काकोच्चाराः। ६. गय १०. घयण ११. गोल ९. गज १०. 'घयण' ११. गोलक १२. खंभे,
१२. स्तम्भाः , १३. खुड्डुग १४-१५. मग्गि-त्थि १३. क्षुल्लक १४.,१५. मार्ग-स्त्री १६. पइ १७. पुते ॥३॥
१६. पति १७. पुत्राः ॥ (१. भरहसिल २. मिढ (१. भरतशिला २. मिढ' ३. कुक्कुट ३. कुक्कुड ४. तिल ५. वालुय ४. तिल ५. बालुका ६,७. 'हस्त्यगड' ६. हत्थि ७. अगड ८. वणसंडे ।
८. वनषण्डाः । ६. पायस १०. अइया ११. पत्ते ९. पायसा १०. अजिका ११. पत्राणि १२. खाडहिला १३.पंचपिअरो॥) १२. 'खाडहिला' १३. पञ्चपितरश्च।) महुसित्थ-मुद्दि-अंके,
मधुसिक्थ-मुद्रिका-अङ्काः, य नाणए-भिक्खु-चेडगनिहाणे। च 'नाणए'-भिक्षु-'चेडग' निधानानि । सिक्खा त अत्थसत्थे,
शिक्षा च अर्थशास्त्रं, इच्छा य महं सयसहस्से ॥४॥ इच्छा च मम शतसहस्रम् ॥
(१. भरतशिला २. मेंढा ३. मुर्गा ४. तिल ५. बालुका ६. हाथी ७. कुआ ८. वनखण्ड ९. खीर १०. अजिका-बकरी की मिंगनी ११. पत्र १२. गिलहरी १३. पांच पिता।)
४. १ मधु मक्खियों का छाता २. मुद्रिका ३. अंक ४. रूपयों की नोली ५. भिक्षु ६. बालक निधान ७. शिक्षा ८. अर्थशास्त्र ९. मेरी इच्छा १०. एक लाख-ये औत्पत्तिकी बुद्धि के उदाहरण हैं।
वेणइया बुद्धीभरनित्थरणसमत्था, तिवग्गसुत्तत्थगहियपेयाला। उभओलोगफलवई, विणयसमुत्था हवइ बुद्धी ॥५॥ निमित्त अत्थसत्थे य, लेहे गणिए य कुव-अस्से य। गद्दभ-लक्खण-गंठी, अगए रहिए य गणिया य ॥६॥
वनयिको बुद्धिः भरनिस्तरणसमर्था, त्रिवर्गसूत्रार्थगृहीत ‘पेयाला'। उभयलोकफलवती, विनयसमुत्था भवति बुद्धिः॥ निमित्तमर्थशास्त्रञ्च, लेखं गणितञ्च कूपाश्वौ च । गर्दभ-लक्षण ग्रन्थिः , अगदः रथिकश्च गणिका च ।
वैनयिकी बुद्धि
५. भार के निर्वाह में समर्थ, त्रिवर्ग के सूत्र और अर्थ का सार ग्रहण करने वाली, उभयलोक फलवती, विनय से उत्पन्न बुद्धि का नाम वैनयिकी है।
६, ७.१. निमित्त २. अर्थशास्त्र ३. लेखन ४. गणित ५. कूप ६. अश्व ७. गधा ८. लक्षण ९. गांठ १०, औषध ११. रथिक गणिका १२. भीगी हुई साडी, दीर्घतृण, उल्टा घूमता हुआ क्रौंच पक्षी १३. नेवे का पानी १४. बैल, अश्व, वृक्ष से गिरना।
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