Book Title: Agam 31 Chulika 01 Nandi Sutra Nandi Terapanth
Author(s): Tulsi Acharya, Mahapragna Acharya
Publisher: Jain Vishva Bharati

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Page 124
________________ प्र० ३, सू० ३६-५०, टि० ५ ४. धारणा अवाय के साथ अवगृहीत विषय की बोधात्मक प्रक्रिया सम्पन्न हो जाती है । तदनन्तर उसकी धारणा का क्रम चालू होता है। उसके पांच रूप बनते हैं । एकार्थक पदों के द्वारा उनका निर्देश किया गया है। १.धरणा--धारणा की पहली अवस्था है धरणा । इस अवस्था में अवधारित विषय की अविच्युति बनी रहती है। इसका न्यूनतम और अधिकतम कालमान अन्तर्मुहूर्त है।' २. धारणा-यह दूसरी अवस्था है । इस अवस्था में अवधारित विषय अनुपयोग के कारण विच्युत हो जाता है। जघन्यत: अंतर्मुहर्त और उत्कृष्टतः एक दिन, दो दिन तथा असंख्येय काल तक स्मृति योग्य बना रहता है।' ३. स्थापना-धारणा की तीसरी अवस्था है स्थापना। इस अवस्था में अवधारित अर्थ पूर्वापर होने पर भी आलोचनापूर्वक हृदय (मस्तिष्क) में स्थापित किया जाता है ।' हरिभद्र और मलयगिरि ने इसका अर्थ वासना किया है।' ४. प्रतिष्ठा-धारणा की चौथी अवस्था है प्रतिष्ठा। इस अवस्था में अवधारित अर्थ प्रभेदपूर्वक हृदय (मस्तिष्क) में प्रतिष्ठित किया जाता है। जैसे जल में पत्थर नीचे जाकर प्रतिष्ठित होता है। ५. कोष्ठ-धारणा की पांचवी अवस्था है कोष्ठ । जैसे-कोठे में प्रक्षिप्त धान्य विनष्ट नहीं होता वैसे ही अवाय के द्वारा अवधारित अर्थ विनष्ट नहीं होता। जिनभद्रगणि ने धारणा के तीन प्रकार बतलाए हैं-१. अविच्युति २. वासना ३. स्मृति । अविच्युति की तुलना धरणा से होती है । वासना की तुलना स्थापना से होती है। जिनभद्रगणि ने धारणा का एक अर्थ अवाय की अविच्युति किया है।" आचार्य हेमचन्द्र ने अविच्युति को अवाय के अन्तर्भूत बतलाया है। स्मृति वासना रूप धारणा का कार्य है फिर भी उसका धारणा के प्रकार के रूप में निर्देश किया गया है। उत्तरवर्ती दार्शनिकों के अनुसार धारणा प्रत्यक्ष ज्ञान के अन्तर्गत है और स्मृति परोक्ष प्रमाण का एक अङ्ग है । धारणा के अर्थ में संस्कार का भी प्रयोग किया गया है।" १. (क) नन्दी चूणि, पृ. ३७ : अवायाणंतरं तमत्थं अविच्च तीए जहण्णुक्कोसेणं अंतमुहत्तं धरेंतस्स धरणा भण्णति । (ख) हारिभद्रीया वृत्ति, पृ. ५१ (ग) मलयगिरीया वृत्ति, प. १७७ २. (क) नन्दी चूणि, पृ. ३७ : तमेव अत्थं अणुवयोगत्तणतो विच्चुतं जहण्णेणं अंतमुहुत्तातो परतो दिवसादिकाल विभागेसु संभरतो य धारणा भण्णति । (ख) हारिभद्रीया वृत्ति, पृ. ५१ (ग) मलयगिरीया वृत्ति, प. १७७ ३. (क) नन्दी चूणि, पृ. ३७ : सा य अवायावधारियमत्थं पुवावरमालोइयं हियतम्मि ठावयंतस्स ठवणा भण्ण ति, पूर्णघटस्थापनावत् । (ख) हारिभद्रीया वृत्ति, पृ. ५१ (ग) मलयगिरीया वृत्ति, प. १७७ ४. (क) हारिभद्रीया वृत्ति, पृ. ५१ (ख) मलयगिरीया वृत्ति, प. १७७ ५. (क) नन्दी चूणि, पृ. ३७ : 'पति?' त्ति सो च्चित अवधारितत्थो हितयम्मि प्रभेदेन पइट्ठातमाणो पतिट्ठा भण्णति, जले उपलप्रक्षेपप्रतिष्ठावत् । (ख) हारिभद्रीया वृत्ति, पृ. ५१ (ग) मलयगिरीया वृत्ति, प. १७७ ६. (क) नन्दी चूणि, पृ. ३७ : 'कोठे' त्ति जहा कोट्ठगे सालिमादिबीया पक्खित्ता अविणट्ठा धारिज्जत्ति तहा अवातावधारितमत्यं गुरूवदिह्र सुत्तमत्थं वा अविणहूँ धारयतो धारणा कोट्ठगसम त्ति कातुं कोठे ति वत्तव्वा । (ख) हारिभद्रीया वृत्ति, पृ.५१ (ग) मलयगिरीया वृत्ति, प. १७७ ७. विशेषाश्यक भाष्य, गा. २९१ की टीका : तदर्थादविच्यवनम् उपयोगमाश्रित्याऽभ्रंशः यश्च वासनाया जीवेन सह योगः संबंधः, यच्च तस्याऽर्थस्य कालान्तरे पुनरिन्द्रियरुपलब्धस्य, अनुपलब्धस्य वा, एवमेव मानसाऽनुस्मरणं स्मृतिर्भवति, सेयं पुनस्त्रिविधाऽप्यर्थस्याऽवधारणरूपा धारणा विज्ञेया। ८. वही, गा. १८० : सामण्णत्थावग्गहणमुग्गहो भेयमग्गणमहेहा । तस्सावगमोऽवाओ अविच्चुई धारणा तस्स ॥ ९. प्रमाण मीमांसा, ११।२९ : 'स्मृतेः' अतीतानुसन्धानरूपाया 'हेतुः परिणामिकारणम्, संस्कार इति यावत्, सङ्खयं यम सङ्खच यं वा कालं ज्ञानस्यावस्थानं 'धारणा'। १०. वही, ११।२९ : यद्यपि स्मृतिरपि धारणाभेदत्वेन सिद्धांतेऽभिहिता तथापि परोक्षप्रमाणभेदत्वात् । Jain Education Intemational For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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