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नंदी
से उवगयं हवइ। तओ धारणं ततः स उपगतः भवति । ततो धारणां पविसइ, तओ णं धारेइ संखेज्जं प्रविशति, ततो धारयति संख्येयं वा वा कालं, असंखेज्जं वा कालं। कालं असंख्येयं वा कालम् । तदेतद्सेतं मल्लगदिळंतेणं॥ 'मल्लग' दृष्टान्तेन ।
करता है, तब स्वप्न उपगत हो जाता हैउसका निर्णय हो जाता है। उसके पश्चात् वह धारणा में प्रवेश करता है। निर्णीत विषय को संख्येय काल अथवा असंख्येय काल तक धारण करता है। वह मल्लक दृष्टान्त है ।
५४. तं समासओ चउन्विहं पण्णत्तं, तं तत् समासतश्चतुर्विधं प्रज्ञप्तं, ५४. वह (आभिनिबोधिक ज्ञान का विषय) संक्षेप
जहा-दव्वओ, खेत्तओ, काल ओ, तद्यथा--द्रव्यतः, क्षेत्रतः, कालतः, में चार प्रकार का प्रज्ञप्त है-द्रव्यतः, क्षेत्रतः, भावओ। तत्थ दव्वओ णं आभि- भावतः। द्रव्यतः आभिनिबोधिक- कालतः, भावतः । णिबोहियनाणी आएसेणं सव्व- ज्ञानी आदेशेन सर्वद्रव्याणि जानाति, द्रव्य की दृष्टि से आभिनिबोधिकज्ञानी दब्वाईजाणइ, न पासइ । खेत्तओ न पश्यति । क्षेत्रतः आभिनिबोधिक- आदेशत: सब द्रव्यों को जाना है, देखता णं आभिणिबोहियनाणी आएसेणं ज्ञानी आदेशेन सर्व क्षेत्रं जानाति, न नहीं। सव्वं खेत्तं जाणइ, न पासइ। पश्यति । कालतः आभिनिबोधिक- क्षेत्र की दृष्टि से आभिनिबोधिकज्ञानी कालओ णं आभिणिबोहियनाणी ज्ञानी आदेशेन सर्व कालं आदेशत: सर्व क्षेत्र को जानता है, देखता आएसेणं सव्वं कालं जाणइ, न जानाति, न पश्यति । भावतः आभि- नहीं। पासह । भावओणं आभिणिबोहि- निबोधिकज्ञानी आदेशेन सर्वान ___ काल की दृष्टि से आभिनिबोधिकज्ञानी यनाणी आएसेणं सब्वे भावे जाणइ, भावान् जानाति, न पश्यति ।
आदेशतः सर्व काल को जानता है, देखता न पास।
नहीं।
भाव की दृष्टि से आभिनिबोधिकज्ञानी आदेशत: सब भावों को जानता है, देखता
नहीं।' उग्गह ईहावाओ, अवग्रहः ईहा अवायः,
१. अवग्रह, ईहा, अवाय और धारणा ये य धारणा एव हुँति चत्तारि । च धारणा एवं भवन्ति चत्वारि ।
चार संक्षेप में आभिनिबोधिकज्ञान की भेद आभिणिबोहियनाणस्स, आभिनिबोधिकज्ञानस्य,
वस्तुएं हैं। भेयवत्थु समासेणं ॥१॥
भेदवस्तूनि समासेन ॥ अत्थाणं उग्गहणं, अर्थानामवग्रहणं,
२. अवग्रह–अर्थ का अवग्रहण, ईहा--- च उग्गह तह वियालणं ईहं।
च अवग्रहं तथा विचारणमीहाम् । विचारणा, अवाय-व्यवसाय अथवा निर्णय, ववसायं च अवायं, व्यवसायञ्च अवायं,
धारणा-धारण करना। धरणं पुण धारणं बिति ॥२॥
धरणं पुनः धारणां ब्रुवते ॥ उग्गह इक्कं समयं, अवग्रहः एक समयम्,
३. अवग्रह का कालमान एक समय, ईहा ईहावाया मुहुत्तमद्धं तु। ईहावायौ मुहूर्तमद्धं तु।
और अवाय का अर्द्ध मुहूर्त, धारणा का कालमसंखं संखं, कालमसंख्यं संख्यं,
काल मान संख्यात और असंख्यात काल है। च धारणा होइ नायव्वा ॥३॥ च धारणा भवति ज्ञातव्या । पुढें सुणेइ सई, स्पृष्टं शृणोति शब्द,
४. श्रोता कानों से स्पृष्ट शब्दों को सुनता रूवं पुण पासइ अपुळं तु । रूपं पुनः पश्यति अस्पृष्टन्तु ।
है, द्रष्टा चक्षु से अस्पृष्ट रूप को देखता है। गंध रसं च फासं च, गन्धं रसञ्च स्पर्शञ्च,
गंध, रस और स्पर्श का संवेदन बद्ध-स्पृष्ट बद्धपुळं वियागरे ॥४॥ बद्धस्पृष्टं व्यागृणीयात् ॥
अवस्था में होता है। भासासमसेढीओ, भाषा समश्रेणीतः,
५. भाषा की समश्रेणी में रहा हुआ श्रोता सई जं सुणइ मोसयं सुणइ। शब्दं यं शृणोति मिश्रकं शृणोति । मिश्र शब्द को सुनता है। विषम श्रेणी में रहा वीसेढी पुण सइं, विश्रेणिः पुनः शब्दं,
हुआ श्रोता नियमतः पराघात से शब्द को सुणेइ नियमा पराघाए ॥५॥ शृणोति नियमात् पराघाते॥
सुनता है।"
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