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दूसरा प्रकरण : प्रत्यक्ष ज्ञान : सूत्र १८-२० भरहम्मि अद्धमासो,
भरतेऽर्द्धमासो, जंबुद्दीवम्मि साहिओ मासो।
जम्बूद्वीपे साधिको मासः । वासं च मणुयलोए,
वर्षञ्च मनुजलोके, वासपुहत्तं च रुयगम्मि ॥५॥
वर्षपृथक्त्वञ्च रुचके ॥
संखेज्जम्मि उ काले,
संख्येये तु काले, दीवसमुद्दा वि हंति संखेज्जा। द्वीपसमुद्रा अपि भवन्ति संख्येयाः। कालम्मि असंखेज्जे,
कालेऽसंख्येये, दीवसमुद्दा उ भइयव्वा ॥६॥ द्वीपसमुद्रास्तु भक्तव्याः॥ काले चउण्ह वुड्ढी,
काले चतुर्णा वृद्धि :, कालो भइयव्वु खेत्तवुड्ढोए।
कालो भक्तव्यः क्षेत्रवृद्धौ। वुड्ढीए दव्वपज्जव,
वद्धौ द्रव्यपर्याययोः, भइयव्वा खेत्तकाला उ ॥७॥ भक्तव्यौ क्षेत्रकालौ तु ॥ सुहमो य होइ कालो,
सूक्ष्मश्च भवति कालः, तत्तो सुहुमयरयं हवइ खेत्तं । ततः सूक्ष्मतरकं भवति क्षेत्रम् । अंगुलसेढीमित्ते,
अङ गुलश्रेणिमात्रे, ओसप्पिणिओ असंखेज्जा ॥८॥ अवसपिण्यः असंख्येयाः॥
सेत्तं वड्ढमाणयं ओहिनाणं ॥ तदेतद् वर्धमानकम् अवधिज्ञानम् । १६. से कि तं हायमाणयं ओहिनाणं? अथ किं तद् हीयमानकम् अवधि-
हायमाणयं ओहिनाणं अप्पसत्थेहिं ज्ञानम् ? हीयमानकम् अवधिज्ञानम् - अज्झवसाणट्ठाहिं वट्टमाणस्स अप्रशस्तेषु अध्यवसायस्थानेषु वर्तमानवट्टमाणचरित्तस्स, संकिलिस्स- स्य वर्तमानचरित्रस्य, संक्लिश्यमाणस्स संकिलिस्समाणचरित्तस्स मानस्य संक्लिश्यमानचरित्रस्य सर्वतः सव्वओ समंता ओही परिहायइ। समन्ताद् अवधिः परिहीयते । तदेतद् सेत्तं हायमाणयं ओहिनाणं ॥ हीयमानकम् अवधिज्ञानम् ।
५. भरत जितने क्षेत्र को देखने वाला अर्द्धमास काल तक देखता है। जम्बूद्वीप जितने क्षेत्र को देखने वाला साधिक मास (एक महिने से कुछ अधिक) काल तक देखता है। मनुष्य लोक जितने क्षेत्र को देखने वाला एक वर्ष तक देखता है, रुचक-द्वीप जितने क्षेत्र को देखने वाला वर्ष पृथक्त्व (दो से नौ वर्ष) तक देख ता है।
६. संख्येय द्वीप समुद्र जितने क्षेत्र को देखने वाला संख्येय काल तक देखता है। असंख्येय काल तक देखता है, तब द्वीप और समुद्र की भजना है।
७. काल वृद्धि के साथ द्रव्य, क्षेत्र और भाव की वृद्धि निश्चित होती है। क्षेत्र की वृद्धि में काल वृद्धि की भजना है। द्रव्य और पर्याय की वृद्धि में क्षेत्र और काल की भजना है।
८. काल सूक्ष्म होता है, क्षेत्र उससे सूक्ष्मतर होता है । अंगुलश्रेणि मात्र आकाश प्रदेश का परिमाण असंख्येय अवसर्पिणी की समय राशि जितना होता है ।" वह वर्धमान
अवधिज्ञान है। १९. वह हीयमान अवधिज्ञान क्या है ?
हीयमान अवधिज्ञान-जो अप्रशस्त अध्यवसायों में वर्तमान और चरित्र में वर्तमान है, जो संक्लिश्यमान और संक्लिश्यमान चरित्र वाला है उसका अवधिज्ञान सब ओर से घटता है।" वह हीयमान अवधिज्ञान है।
२०. से कि तं पडिवाइ ओहिनाणं? अथ किं तत् प्रतिपाति अवधि- २०. वह प्रतिपाती अवधिज्ञान क्या है ?
पडिवाइ ओहिनाणं-जण्णं ज्ञानम् ? प्रतिपाति अवधिज्ञानम्- प्रतिपाती अवधिज्ञान-जो जघन्य अंगुल के जहण्णणं अंगुलस्स असंखेज्जयभागं यद् जघन्येन अङ गुलस्य असंख्येयतम- असंख्येय भाग, संख्येय भाग, बालान, बालाग्रवा संखेज्जयभागं वा, वालग्गं वा भागं वा, संख्येयतमभागं वा, बालाग्रं पृथक्त्व, लिक्षा, लिक्षापृथक्त्व, यूका, यूकावालग्गपुहत्तं वा, लिक्खं वा वा, बालाग्रपृथक्त्वं वा, लिक्षां वा,
पृथक्त्व, यव, यवपृथक्त्व, अंगुल, अंगुललिक्खपुहत्तं वा, जूयं वा जयपुहत्तं लिक्षापृथक्त्वं वा, यूकां वा, यूका
पृथक्त्व, पाद, पादपृथक्त्व, वितस्ति, वितस्तिवा, जवं वा जवपुहतं वा, अंगुलं पृथक्त्वं वा, यवं वा, यवपृथक्त्वं वा, पृथक्त्व, रत्नि, रत्निपृथक्त्व, कुक्षि, कुक्षिवा अंगुलपुहत्तं वा, पायं वा पाय- अङ गुलं वा, अङ गुलपृथक्त्वं वा,
पृथक्त्व, धनुष, धनुषपृथक्त्व, गव्यूति, गव्यूतिपुहत्तं वा विहत्थि वा विहत्थिपुहत्तं पादं वा, पादपृथक्त्वं वा, वितस्तिं
पृथक्त्व, योजन, योजनपृथक्त्व, सौ योजन, वा, रणि वा रयणिपुहत्तं वा, वा, वितस्तिपृथक्त्वं वा, रनि वा, सौ योजनपृथक्त्व हजार योजन, हजार कुच्छि वा कुच्छिपुहत्तं वा, धणुं रत्निपृथक्त्वं वा, कुक्षि वा, कुक्षि- योजनपृथक्त्व, लाख योजन, लाख योजनवा धणुपुहत्तं वा, गाउयं वा गाउय- पृथक्त्वं वा, धनुर्वा, धनुःपृथक्त्वं वा, पृथक्त्व, करोड़ योजन, करोड़ योजनपृथक्त्व,
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