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प्र० १, गा० ३५-४४, टि० २२-२७
प्रस्तुत गाथा में नामोल्लेख के बिना जितने कालिक श्रुत के आनुयोगिक---एकादश अङ्गधर थे उन सबको नमस्कार किया है।
गाथा ४४ २७. (गाथा ४४) १. मुद्गर्शल दृष्टान्त
एक ओर मुद्गशैल नामक पर्वत। दूसरी ओर पुष्करावर्त्त नामक महामेघ । नारद तुल्य कोई कलहप्रिय व्यक्ति उन दोनों में कलह कराने के उद्देश्य से सर्वप्रथम मुद्गशैल के पास गया । उसने कहा-हे मुद्गशैल ! महापुरुषों की परिषद् में बताया गया कि जल के द्वारा मुद्गशैल का भेदन नहीं किया जा सकता। तुम्हारा यह गुणानुवाद पुष्करावर्त्त सहन नहीं कर सका । वह बोलामिथ्या प्रशंसा से क्या लाभ ? गगनचुम्बी पर्वत भी मेरी वेगपूर्ण धारा से खण्ड-खण्ड हो जाते हैं। फिर बेचारा मुद्गशैल कौन-सी हस्ति, वह मेरी एक धारा को भी सहन नहीं कर पाएगा।
यह सुन मुद्गशैल क्रोधमिश्रित गर्व से बोला-हे महर्षि नारद ! परोक्ष में बहुत अधिक बोलने से क्या। मेरी एक बात सुनो। वह दुरात्मा पुष्करावर्त सात दिन-रात अनवरत बरसने के बाद भी यदि वह तिलतुष मात्र भी भेदन कर दे तो मैं अपने मुद्गशैल नाम को छोड़ दूंगा। मुद्गशैल की इस गर्वोक्ति को सुन वह पुष्करावर्त के पास पहुंचा। उसने सारी बात को बढ़ा-चढ़ा कर कहा । पुष्करावर्त ने कोपाविष्ट हो बरसना शुरू कर दिया। सात दिन-रात मुसलाधार बरसने से सारी पृथ्वी मानो जलाप्लावित हो गयी। पूरी पृथ्वी को जलाकार देखकर उसने सोचा उस बेचारे मुद्गर्शल का अस्तित्व कहां बचा होगा ; थोड़ी देर बाद वर्षा रुक गई। जल का वेग कुछ कम होने पर पुष्करावर्त्त ने नारद से कहा-चलो देखें मुद्गशैल की क्या स्थिति है। दोनों चल पड़े। मुद्गशैल का धुलि धुसर शरीर अब और अधिक चमकने लगा। उन दोनों को आते हुए देखकर वह बोला आओ तुम्हारा स्वागत है। काञ्चन वृष्टि की तरह तुम्हारा अकल्पित आगमन देखकर मन प्रसन्नता से भर गया। उसे इस स्थिति में देख पुष्करावर्त के नयन लज्जा से झुक गए। वह बिना कुछ बोले लौट गया। उक्त कथा का निष्कर्ष यह है कि मुद्गशैल तुल्य शिष्य को गुरु प्रयत्नपूर्वक पढ़ाता है फिर भी वह एक पद का भी ग्रहण नहीं करता। २. कुट दृष्टान्त
घट के चार प्रकार हैं१. छिद्र कुट..... अधोभाग में छिद्र वाला घट २. खण्ड कुट-एक पार्श्व से खण्डित घट ३. कण्ठहीन कुट ---ग्रीवा रहित घट ४. सम्पूर्ण कुट–परिपूर्ण घट ।
नीचे छिद्र वाले घट में जल भरा जाए तो वह जब तक भूमि में संलग्न रहता है तब तक उसमें से पानी अधिक मात्रा में नहीं निकलता । एक पार्श्व से खण्डित घट में से आधा, तिहाई अथवा चौथाई जल निकल जाता है। ग्रीवा रहित घट से थोड़ा सा जल बाहर निकलता है और परिपूर्ण घट सम्पूर्ण जल को धारण कर लेता है ।
इसी प्रकार शिष्य चार प्रकार के होते हैं१. व्याख्यान मण्डली में उपविष्ट होकर सब कुछ समझ जाता है, वहां से उठने के बाद कुछ भी याद नहीं रहता। वह __ छिद्रकुट के समान है। २. जो व्याख्या मण्डली में उपविष्ट होकर आधा, तिहाई और चौथाई सूत्र अर्थ को ग्रहण करता है। जितना सुना, ___ अवधारित किया, उसे याद रखता है। वह खण्ड कुट के समान है। ३. जो व्याख्यान मण्डली में उपविष्ट होकर प्राय: सूत्र और अर्थ को ग्रहण करता है और पश्चात् स्मृति में भी रखता
है। वह कण्ठहीन कुट के समान है।
४ जो समग्र सूत्र और अर्थ को ग्रहण करता है और स्मृति में रखता है वह सम्पूर्ण घट के समान है। १. नंदीचूणि, पृ. १२ : एस णमोक्कारो आयरिययुगप्पहाण- २. (क) विशेषावश्यक भाष्य, गा. १४६२ : पुरिसाणं विसेसग्गहणतो कतो। इमा पुण सामण्णतो
जे उण अभाविय ते चउब्विहा अहविमो गमो अन्नो। सुतविसिट्ठाण कज्जइ।
छिडकुड-भिन्न-खंडे सगले य परूवणा तेसि ॥ (ख) बृहत्कल्प भाष्य, गा. ३४२ (ग) मलयगिरीया वृत्ति, प० ५६,५७
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