Book Title: Agam 06 Ang 06 Gnatadharma Sutra Part 03 Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
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अनगारधर्मामृतवर्षिणी टो० अ० १६ सुकुमारिकाचरितवर्णनम्
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खलु सा सुकुमारिका गोपालिकानामार्याणामेतमर्थ नो श्रद्दधाति 'नो पत्तिय नो प्रत्येति = नो विश्वसिति, 'नो रोएइ ' नो रोचते, एतमर्थम् अधाना अप्रतियन्ती, अरोचमाना सति सुमृमिभागग्य उद्यानस्य अदृरसामन्ते षष्ठ- पष्ठेन यावत् - तपः कर्मणा सूर्याभिमुखी भूत्वा - आतापनां कुर्वती विहरति ॥ सु० १३ ॥
मूलम् - तत्थ णं चंपाए ललिया नाम गोट्टी परिवसइ, नरवइ दिण्णवियारा अम्मापिइनिययनिष्पिवासा वेसबिहा रकयनिकेया नाणाविहअविनयप्पहाणा अड्डा जाव अपरिभूया, तत्थ णं चंपाए देवदत्ता नामं गणिया होत्था सुकुमाला जहा अंडणाए, तरणं तीसे ललियाए गोर्खाए अन्नया पंच गोट्टिलग पुरिसा देवदत्ताए गणियाए सद्धिं सुभूमिभागस्स कि जो भित्ति आदि से सब तरफ से परिक्षिप्त है भीतर ही अपने शरीर को शाटिका से अच्छी तरह संवृत्त करती हुई और भूमि पर दोनों चरणों को बराबर स्थापित कर आतापना लें (तपणं सा समालिया गोवालियाए एयमह नो सद्दह, नो पतियह नो गेएड एमई अ० ३ सुभूमिभागस्स उज्जाणस्स अदूरसामने छट्ठ छट्टेणं जाव faers ) इस गोपालिका आर्याके कथन ऊपर उस सुकुमारिका आर्या को श्रद्धा नहीं जमी उस पर उसे विश्वास नहीं आया. वह उसे रुचा नहीं । इस तरह वह उसे अश्रद्धा अप्रतीति और अरुचि का विषय बनाती हुई सुभूमिभाग नामक उद्यान के पास पष्ट पष्ट की तपस्या करती हुई वह सूर्याभिमुख होकर आतापना करने लगी | सू० १३ ॥
પરિક્ષિપ્ત ઉપશ્રયની અંદર જ પેાતાના શરીરને શાટિકા-સાડીથી સારી રીતે ઢાંકીને અને ભૂમિ ઉપર બંને ચરણાને બરાબર સ્થાપિત કરીને આતાપના समे (तएण सासूमालिया गोवालियाए एयमट्ठ नो सद्दहइ नो पत्तियइ नो रोएइ, एयमट्ठ अ० ३ सुभूमिभागास उज्जाणस्स अदूरसामंते छट्टु छट्टणं जाब विहरइ ) गोपानि । आर्याना उथन उपर सुकुमार भार्याने श्रद्धा थर्म नहि, તેના ઉપર તેને વિશ્વાસ થયેા નહિ. તે તેને ગમ્યું પણ નહિ આ રીતે તે તે કથન પ્રત્યે અશ્રદ્ધા, અપ્રતીતિ અને અરુચિ ધરાવતી સુભૂમિભાગ નામના ઉદ્યાનની પાસે ષષ્ટ ષષ્ટની તપસ્યા કરતી સૂર્યાભિમુખી થઈને આતાપના ५२वा बागी | सूत्र १३ ॥
શ્રી જ્ઞાતાધર્મ કથાંગ સૂત્ર ઃ ૦૩