Book Title: Agam 06 Ang 06 Gnatadharma Sutra Part 03 Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti

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Page 804
________________ - अनगारघमामृतषिणी टी० श्रु० २ ० १ ० १ कालीदेवीवर्णनम् ७८९ शयान् पश्यति, दृष्ट्वा शिविकां स्थापयति, स्थापयित्वा कालिकां दारिकां शिविकातः प्रत्यवरोहयति । ततः खलु तां कालिकां दारिकाम् अम्बापितरौ पुरतः कृत्वा यत्रैव पार्थोऽर्हन् पुरुषादानीयस्तत्रैवोपागच्छति, उपागत्य वन्देते नमस्यतः, वन्दित्वा नमस्यित्वा एवमवादिष्टाम्-एवं खलु हे देवानुप्रियाः ! काली दारिका आवयोर्दुहिता इष्टा कान्ता यावत् उदुम्बरपुष्पमिव श्रवणायापि दुर्लभा किमङ्ग ! पुनः तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता छत्ताइए तित्थगराइसए पासइ) निकलकर वह वहां गया कि जहां वह आम्रशालवन नाम का उद्यान था। वहाँ जाकर उसने तीर्थकर प्रकृति के उदय से होनेवाले छत्रादिक अति. शयों को देखा। (पासित्ता सीयं ठावेइ, ठावित्ता कालियदारियं सीयाओ पच्चोरुहइ, तएणं तं कालीय दारियं अम्मापियरो पुरओ काउं जेणेव पासे अरहा पुरिसा० तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता वंदइ, नमसइ, वंदित्ता नमंसित्ता एवं वयासी) देखकर उसने उस पुरुष सहस्त्रवाहिनी शिविका को खडी कर दिया। खड़ी करके उसमें से काली दारिका को नीचे उतारा बाद में वे माता पिता उस कालिक दारिका को आगे करके जहां पुरुषादानीय अर्हत प्रभु पार्श्वनाथ विराजमान थे वहां गये। वहां जाकर उन्हों ने उनको वंदना की-नमस्कार किया। वंदना नमस्कार करके बाद में उन्हों ने इस प्रकार प्रभु से कहा-( एवं खलु देवाणुप्पिया! काली दारिया अम्हं धूया इट्टा कंता, जाव किमंगपुणपासणयाए ! एस (णिग्गच्छित्ता जेणेव अंबसालवणे चेइए तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता छत्ताइए तित्थगराइसए पासइ) નીકળીને તે ત્યાં ગયો કે જ્યાં તે આમ્રશાલ વન નામે ઉદ્યાન હતું ત્યાં જઈને તેણે તીર્થંકર પ્રકૃતિના ઉદયથી અસ્તિત્વમાં આવતા છત્ર વગેરે અતિશયોને જોયા. (पासित्ता सीयं ठावेइ, ठावित्ता कालियदारियं सीयाओ पच्चोरुहइ, तएणं तं कालियं दारियं अम्मापियरो पुरओ काउं जेणेव पासे अरहा पुरिसा० तेणेव उवागच्छइ उवागच्छित्ता वंदइ, नमसइ, वंदित्ता नमंसित्ता एवं वयासी) જોઈને તેણે તે પુરુષ સહસ્ત્રવાહિની પાલખીને રોકી. રોકીને તેમાંથી કાલી દારિકાને નીચે ઉતારી. ત્યારપછી તે માતાપિતા તે કાલીક દારિકાને આગળ કરીને જ્યાં પુરુષદાનીય અહંત પ્રભુ પાર્શ્વનાથ વિરાજમાન હતા ત્યાં ગયા. ત્યાં જઈને તેમણે તેમને વંદના કરી, નમસ્કાર કર્યા વંદના તેમજ નમસ્કાર કરીને તેમણે પ્રભુને વિનંતી કરતાં આ પ્રમાણે કહ્યું કે (एवं खलु देवाणुप्पिया ! कालीदारिया अम्हं धूया इट्टा कंता, जाव किमंग श्री शताधर्म अथांग सूत्र:03

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