Book Title: Agam 06 Ang 06 Gnatadharma Sutra Part 03 Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti

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Page 831
________________ ma ज्ञाताधर्मकथाजसूत्रे मोक्ष सम्पाप्तेन द्वितीयस्य वर्गस्य पश्चाध्ययनानि प्रज्ञप्तानि, तद्यथा-शुम्भा १, निशुम्भा २, रम्भा ३, निरम्भा ४, मदना ५, । यदि खलु हे भदन्त ! श्रमणेन यावत्सम्प्राप्तेन द्वितीयस्य वर्गस्य पञ्च-अध्ययनानि प्रज्ञप्तानि, द्वितीयस्य खलु हे भदन्त । वर्गस्य प्रथमाध्ययनस्य कोऽर्थः प्रज्ञप्तः ? । सुधर्मास्वामी पाह-एवं जंबू ! समणेणं जाव संपत्तेणं दोचस्स वग्गस्स पंच अज्झयणा पण्णत्ता) हे भदंत ! मुक्ति स्थान को प्राप्त हुए श्रमण भगवान महावीर ने द्वितीय वर्ग का उत्क्षेपक प्रारंभ किस रूप से प्ररूपित किया है-तब सुधर्मा स्वामी ने उनसे कहा-हे जंबू ! सुनो यावत् मुक्तिस्थान को प्राप्त हुए उन श्रमण भगवान महावीर ने इस द्वितीय वर्ग के पांच अध्ययन प्ररूपित किये हैं-(तं जहा) वे इस प्रकार हैं-(सुंभा, नितुंभा, रंभा, निरंभा मयणा, जइणं भंते ! समणेणं जाव संपत्तण धम्मकहाणं दोचस्स वग्गस्स पंच अज्जयणा पण्णत्ता, दोचस्सणं भंते वग्गस्स पढमज्झयणस्सके अहे एण्णत्ते? एवं खलु जंबू! तेणं कालेणं तेणं समएणं रायगिहे णयरे, गुणसीलए चेइए-सामी समोसढे परिसा णिग्गया जाव पज्जुवा. सइ) (१) शुम्भा, (२) निशुंभा (३) रम्भा, (४) निरंभा (५) मदना, । अब जंबू स्वामी पुन: सुधर्मा स्वामी से पूछते हैं कि हे भदंत ! यदि यावत् मुक्ति स्थान को प्राप्त हुए श्रमण भगवान महावीरने द्वितीयवर्ग जंबू ! समणेणं जाव संपत्तेणं दोच्चस्स वग्गस पंचभज्झयणा पण्णत्ता) હે ભદન્ત ! મુક્તિસ્થાનને પ્રાપ્ત કરેલા શ્રમણ ભગવાન મહાવીરે બીજા વર્ગને ઉલ્લેપક-પ્રારંભ-ક્યા રૂપથી પ્રરૂપિત કર્યો છે? ત્યારે સુધર્મા સ્વામીએ તેમને કહ્યું કે હે જંબૂ ! સાંભળે, યાવત્ મુક્તિસ્થાનને વરેલા તે શ્રમણ ભગવાન મહાવીરે આ બીજા વર્ગના પાંચ અધ્યયને પ્રરૂપિત કર્યા છે. ( तजहा) ते २॥ प्रमाणे - (सुंभा, निसुंभा, रंभा, निरंभा, मयणा, जइणं भंते ! समणेणं जाव संप. तेणं धम्मकहाणं दोच्चस्स वग्गस्स पंच अज्झयणा पण्णत्ता, दोच्चस्स णं भंते वग्गस्स पहमज्झयणस्स के अटे पण्णत्ते ! एवं खलु जंबू ! तेणं कालेणं तेणं समएणं रायगिहे णयरे, गुणसीलए चेइए-सामी समोसढे परिसा णिग्गया जाव पज्जुवासइ) (1) शुंभा, (२) निशुंभा, (3) २, (४) नि२, (५) महना. वे જંબૂ સ્વામી ફરી સુધર્મા સ્વામીને પૂછે છે કે હે ભદન્ત ! જે યાવત્ મુક્તિ श्री शताधर्म अथांग सूत्र : 03

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