Book Title: Agam 06 Ang 06 Gnatadharma Sutra Part 03 Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti

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Page 815
________________ ज्ञाताधर्मकथानमत्रे सम्प्रेक्ष्य कल्ये यावत् सूर्ये ज्वलति 'पाडिएकं ' प्रत्येकम्-उपाश्रयं गृह्णाति । तत्र खलु सा ' अणिवारिया' अनिवारिता-निवारकाभावात् , ' अणोहट्टिया' अनवघट्टिका यहच्छा प्रवृत्तिप्रतिरोधकाभावात् , अतएव 'सच्छंदमई ' स्वच्छन्दमतिः अभीक्ष्णमभीक्ष्णं हस्तौ धावति यावत्-आस्ते वा शेते वा निषेधयति वा। ततः खलु सा काली आर्या पासस्था' पावस्था-गाढकारणंविना नित्यपिण्डभोक्त्री, अतएव पार्श्व स्थविहारिणि, ' ओसण्णा' अवसन्ना समाचारीपालनेऽवसी. दय हो जावेगा-दूसरे उपाश्रय में चली जाऊँ। इस प्रकार का उसने अपने मन में विचार किया। विचार करके फिर वह दूसरे दिन प्रातः काल होते ही सूर्योदय होने पर दूसरे उपाश्रय में चली गई। (तत्थणं सा अणिवारिया अणोहटिया सच्छंदमई अभिक्खणं २ हत्थे धोवेइ, जाव आसयइ वा सयइ वाणीसेहेइ वा-तएणं सा काली अज्जा पासस्था पासस्थविहारी ओसण्णा ओसण्णविहारी, कुसीला कुसीलविहारी, अहाछंदा अहाछंदविहारी, संसत्ता संसत्तविहारी बहूणि वासाणि सा माण्णपरियागं पाउणइ ) वहाँ वह विना रोक टोक, यदृच्छा प्रवृत्ति करने लग गई। इच्छानुसार बार २ हाथ पैर आदि धोने लग गई। उठने बैठने एवं सोने के स्थान को तथा स्वाध्याय भूमि को पहिले से ही पानी से सिञ्चित कर वहां उठने बैठने एवं स्वाध्याय करने लगी। इस तरह की स्वच्छन्द प्रवृत्ति से वह काली आर्या पासस्था-गाढकारण के विना नित्य पिण्ड भोक्त्री-बन गई, पार्श्वस्थ विहारिणी हो गई। समाचारी બીજા ઉપાશ્રયમાં જતી રહું. આ પ્રમાણે તેણે મનમાં વિચાર કર્યો. વિચાર કરીને તે બીજે દિવસે સવાર થતાં જ સૂર્યોદય થયા બાદ બીજા ઉપાશ્રયમાં જતી રહી. (तत्थणं सा अणिवारिया अणोहट्टिया सच्छंदमई अभिक्खणं २ हत्थे धोवेइ, जाव आसयइ वा सयइ वा णीसेहेइ वा तएणं सा काली अज्जा पासत्था पासत्यविहारी ओसण्णा ओसण्णविहारी कुसीला कुसीलविहारी अहा दा अहाछंद. विहारी संसत्ता संसत्तविहारी बहूणि वासाणि सामण्णपरियागं पाउणइ) ત્યાં તે રેક-ટેક વિના સ્વચ્છેદ થઈને પ્રવૃત્તિ કરવા લાગી. ઇચ્છ મુજબ વારંવાર હાથ-પગ ધોવા લાગી, ઉઠવા-બેસવા અને સૂવાના સ્થાનને તેમજ સ્વાધ્યાય ભૂમિને પહેલેથી જ પાણી વડે સિંચિત કરીને ત્યાં ઉઠવા બેસવા તેમજ સ્વાધ્યાય કરવા લાગી. આ જાતની સ્વચ્છન્દ પ્રવૃત્તિથી તે કાલી આર્યા પાસાગાઢ કારણ વગર નિત્ય પિંડ ભકત્રી-બની ગઈ પાશ્વરથ श्री शताधर्म अथांग सूत्र : 03

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