Book Title: Agam 06 Ang 06 Gnatadharma Sutra Part 03 Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti

Previous | Next

Page 805
________________ ७९० ज्ञाताधर्मकथाङ्गसत्र 'पासणयाए' दर्शनाय ?, एषा खलु हे देवानुप्रियाः । संसारभयोद्विग्ना इच्छति देवानुप्रियाणामन्ति के मुण्डाभूत्वा यावत्पव्रजितुं, तद् एतां खलु देवानुप्रियाणां शिष्याभिक्षां दद्मः, 'पडिच्छंतु ' प्रतीच्छन्तु स्वीकुर्वन्तु खलु हे देवानुप्रियाः ! शिष्याभिक्षाम् । भगवानाह-यथासुखं हे देवानुप्रियो !मा प्रतिबन्धं कुरुतम् । ततः खलु काली कुमारी पार्श्व मर्हन्तं कन्दते नमस्यति, वन्दित्वा नमस्यित्वा उत्तरपौरस्य णं देवाणुप्पिया! संसारभउचिग्गा, इच्छइ, देवाणुप्पियाणं! अंतिए मुंडा भवित्ता जाव पव्वइत्तए, तं एयं णं देवाणुप्पियाणं सिस्सिणिमिक्खं दलयामो पडिच्छंतु णं देवाणुप्पिया! सिस्सिणिभिक्खं) हे देवानुप्रिय ! यह हमारी कालो दारिका नामकी पुत्री है। यह हमें बहुत अधिक इष्टा, कान्ता यावत् उदम्बर पुष्प के समान सुनने के लिये भी दुर्लभा है-तो फिर हे अंग! इसके दर्शन की तो बात ही क्या कहना है । हे देवानुप्रिय ! यह संसारभय से उद्विग्न हो रही है अतः आप देवानुप्रिय के पास मुंडित होकर यावत् संयम लेना चाहती है । इस लिये हम दोनों आपके लिये शिष्या की भिक्षा दे रहे है-आप देवानुप्रिय ! हमारी इस शिष्यारूप भिक्षा को स्वीकार करें (अहासुहं देवाणुप्पिया! मा पडिवंधं करेह ) इस प्रकार उन दोनों का कथन सुनकर प्रभु ने उनसे कहा हे देवानुप्रियो ! आप को जैसा सुख हो-वैसा आप करो-इसमें विलम्ब करने से लाभ नहीं हैं । (तएणं) इसके बाद ( काली कुमारी पास पुण पासणयाए ? एसणं देवाणुप्पिया ! संसारभउचिग्गा, इच्छइ, देवाणुप्पियाणं ! अतिए मुंडा भवित्ता जाव पव्वइत्तए, तं एयं णं देवाणुप्पियाणं सिस्सिणि भिक्खं दलयामो पडिच्छंतु णं देवाणुप्पिया ! सिस्सिणिभिक्खं ) હે દેવાનુપ્રિય! આ અમારી કાલી દારિકા નામે પુત્રી છે. અમારા માટે આ બહુ જ વધારે ઈષ્ટા, કાંતા યાવત્ ઉદુબર પુષ્પની જેમ નામ શ્રવણમાં પણ દુર્લભ છે. તે પછી એના દર્શનની તો વાત જ શી કરવી ? હે દેવા નુપ્રિય ! આ સંસાર ભયથી ઉદ્વિગ્ન થઈ રહી છે. એથી આપ દેવાનુપ્રિય પાસેથી મુંડિત થઈને યાવત્ સંયમ ગ્રહણ કરવા ઇચ્છે છે. એથી અમે બંને આપના માટે આશિષ્યાની ભીક્ષા અર્પણ કરીએ છીએ. આપ દેવાનુપ્રિય અમારી मा शिव्या३५ लिक्षाने २१७१२ ४२. ( अहासुहं देवाणुपिया ! मा पडिबंध करेह ) मा प्रमाणे तसा मनन थन सीने प्रभु तेभन युं है દેવાનુપ્રિયે ! તમને જેમ સુખ પ્રાપ્ત થાય તેમ કરે. આમાં વિલંબ કરવાથી डा नथी. (तएणं) त्या२५७ श्री शताधर्म अथांग सूत्र:03

Loading...

Page Navigation
1 ... 803 804 805 806 807 808 809 810 811 812 813 814 815 816 817 818 819 820 821 822 823 824 825 826 827 828 829 830 831 832 833 834 835 836 837 838 839 840 841 842 843 844 845 846 847 848 849 850 851 852 853 854 855 856 857 858 859 860 861 862 863 864 865 866 867