Book Title: Agam 06 Ang 06 Gnatadharma Sutra Part 03 Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti

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Page 808
________________ - - अनगारधर्मामृतवर्षिणी टी० ० २ ० १ अ. १ कालीदेवी वर्णनम् ७९३ वहुभिः चतुर्थ यावत्-षष्ठाष्टमदशमद्वादशभिस्तपाकर्मभिरात्मानं भावयन्ती विहरति ।। सू०३ ॥ मूलम्-तएणं सा काली अजा अन्नया कयाई सरीरबाउसिया जाया यावि होत्था, अभिक्खणं२ हत्थे धोवइ पाए धोवइ सीसं धोवइ मुहं धोवइ थणंतराइं धोवइ कक्खं तराणि धोवइ गुज्झंतराइं धोवइ जत्थर वि य णं ठाणं वा सेजं वा णिसीहियं वा चेइए तं पुत्वामेव अब्भुक्खेत्ता तओ पच्छा आसयइ वा सयइ वा, णिसीहइ वा, तएणं सा पुप्फचूला अज्ज कालिं अजं एवं क्यासी-नो खलुकप्पइ देवाणुप्पिया ! समणीणं णिग्गं थीणं सरीरबाउसियाणं होत्तए तुमं च णं देवाणुप्पिया ! सरीरबाउसिया जाया अभिक्खणं२ हत्थे धोवसि जाव आसयाहि वा सयाहि वा णिसीहियाहि वा तं तुमं देवाणुप्पिए ! एयस्स ठाणस्स आलोएहि जाव पायच्छित्तं पडिवजाहि, तएणं साकाली सामाइयमाइयाई एक्कारसभंगाई अहिजइ, बहहिं चउत्थ जाव विहरइ) उसका रहन शयन आदि सब व्यवहार नियमित एवं सीमित हो गया। चलती तो वह ईर्या समिति से मार्ग का संशोधन कर चलती। यावत् वह गुप्त ब्रह्मचरिणी बन गई। ९ नौ कोटी से ब्रह्मचर्यव्रत की संरक्षिका हो गई। इसके बाद उस काली आर्या ने पुष्पचूला आर्या के पास सामायिक आदि ग्यारह अंगों का अध्ययन किया-और अनेक चतुर्थ, षष्ठ, अष्टम दशम, द्वादश, तपस्याओं की आराधना से अपने आपको भावित किया। सूत्र ३॥ તેનું રહેવું, સૂવું વગેરે બધું કામ નિયમિત અને સીમિત થઈ ગયું. ચાલતી ત્યારે તે ઇર્યા–સમિતિથી માર્ગનું સંશોધન કરીને ચાલતી. યાવત્ તે ગુપ્ત બ્રહ્મચારિણી બની ગઈ ૯ કેટિથી બ્રહ્મચર્ય વ્રતની તે સંરક્ષિકા થઈ ગઈ. ત્યારપછી તે કાલી આર્યાએ પુપચૂલા આર્યાની પાસે સામાયિક વગેરે અગિયાર અંગોનું અધ્યયન કર્યું અને ઘણા ચતુર્થ, ષષ્ઠ, અષ્ટમ, દશમ, દ્વાદશ તપસ્યાઓની આરાધનાથી પિતાની જાતને ભાવિત કરી. એ સૂત્ર ૩ છે श्री शताधर्म अथांग सूत्र:०३

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