Book Title: Agam 06 Ang 06 Gnatadharma Sutra Part 03 Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti

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Page 807
________________ ज्ञाताधर्मकथासूत्रे ૨ cop ततः खलु पार्थोऽर्हन पुरुषादानीयः काली स्वयमेव पुष्पचलाये आर्या शिष्यात्वेन ददाति । ततः खलु सा पुष्पचूला आर्या काली दारिकां स्वयमेव प्रवाजयति पावत् सा काली तदाज्ञाम् उपसम्पद्य खलु विहरति । ततः सा काली- आर्या जाता, कीदृशी ? स्याह - ईयीसमिता यावत्-गुप्तब्रह्मचारिणी । ततः खलु सा काली अर्थ पुष्पचलाया आर्यांया अन्तिके सामायिकादीनि एकादशाङ्गानि अधीते, तपणं पासे अरहा पुरिसादाणीए कालिं सयमेव पुष्फलाए अज्जाप सिस्मिणियलाए दलह, तरणं सा पुष्फला अज्जा कालिं दारियं सयमेव पवावेड जाव उवपणिं विरड) हे भदंत | यह लोक आटीस हो रहा है - इस प्रकार से पार्श्वनाथ प्रभु के द्वारा स्वयं ही दीक्षित की गई। इसके बाद उन पुरुषादानीय पार्श्व प्रभु ने काली को दीक्षित करके पुष्पचूला आर्या को शिष्याणीरूप से प्रदान कर दिया । पुष्पचूला आर्या ने उसे काली को इस प्रकार दीक्षित करवा कर अपनी शिष्याणीरूप में उसे स्वीकार कर लिया यावत् वह काली उस आर्या की आज्ञानुसार अपनी प्रवृत्ति करने लग गई। (एणं सा काली अञ्चा जाव ) इस तरह वह काली अय आर्या हो गई। (ईरिया समिधा जान गुत्तरं भयारिणी संपूर्ण मा काली अज्जा पुष्कचूलाए अजाप अंति पासे अरहा पुरिसादाणीए कार्लि सयमेव पुष्फलाए अज्जाए सिस्सिणिय सार दलय, वर्ण सा पुष्कचूला अज्जा कालिं दारिये सयमेव पन्यावेइ-जाव उपसंप जित्ताणं विहरद ) હું બદન્ત આ લક દ્રીસ થઈ રહ્યો છે. આ પ્રમાણે આ પ પાર્શ્વનાથ પ્રભુ વધુ જાતે જ દીક્ષિત્ત કરવામાં આવી, ત્યારપછી તે પુરુષાદાનીય પાર્શ્વ પ્રભુએ કાલીને દીક્ષિત કરીને પુષ્પયૂલા આર્યાને શિષ્યાના રૂપમાં આપી દીધી. પુષ્પચૂલા આર્યાએ તે કાલીને આ પ્રમાણે દીક્ષિત કરાવીને પાતાની શિષ્યાના રૂપમાં તેના સ્વીકાર કરી લીધે ચાલતું તે કાલી તે આર્યોની आजा शुक्रतानी प्रवृत्ति का बागी (तपणं सा काली अज्जा जाब ) આ રીતે તે કાલી હવે આ થઈ ગઈ. (ईरिया समिया जाव गुत्तर्वभयारिणी, वएणं सा काली अज्जा पुष्फलाए अज्जा अंतिए सपाइयमाइयाई एक्कारसअंगाई अहिज्जइ, बहू उत्यजाय बिहरह શ્રી જ્ઞાતાધર્મ કથાંગ સૂત્ર ઃ ૦૩

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