Book Title: Agam 06 Ang 06 Gnatadharma Sutra Part 03 Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
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अनगारधर्मामृतपषिणी टीका श्रु०२ व०१ अ०र कालादयावणनम् ७९५ तएणसा कालीदेवीआहुणोववण्णा समाणी पंचविहाए पज्जत्तीए जहा सूरियाभो जाव भासामण पज्जत्तीए। तएणं सा कालीदेवी चउण्हंसामाणियसाहस्सीणं जाव अण्णेसिं च बहूर्ण कालवडेंसगभवणवासणिं असुरकुमाराणं देवाण य देवीण य आहेवचं जाव विहरइ, एवं खलु गोयमा ! कालीए देवीए सा दिव्वा देविड्डी३ लद्धा पत्ता अभिसमण्णागया, कालीए णं भंते ! देवीए केवइयं कालं ठिई पन्नत्ता ?, गोयमा! अडाइज्जाइं पलिओवमाई ठिई पन्नत्ता, काली णं भंते ! देवी ताओ देवलोगाओ अणंतरं उव्वहित्ता कहिं गच्छिहिइ कहिं उववज्जिहिइ ?, गोयमा ! महाविदेहे वासे सिज्झिहिइ, एवं खलु जंबू ! समणेणं जाव संपत्तेणं पढमस्स वग्गस्स पढमज्झयणस्स अयमट्टे पण्णत्ते तिबेमि । धम्मकहाणं पढमज्झयणं समत्तं ॥ सू० ४ ॥
टीका-'तएणं सा' इत्यादि-ततः खलु सा काली आर्या अन्यदा कदा. चित् — सरीरवाउसिया ' शरीरा बाकुशिका-शरीरसंस्करणशीला जाता चाप्यासीत् । अथ सा किं करोती? त्याह-अभीक्ष्णं २ वारंवारं हस्तौ धावति, पादौ धावति, ___ 'तएणं सा काली अज्जा अन्नया कयाई,' इत्यादि।
टीकार्थः-(तएणं) इसके बाद (सा काली अज्जा ) वह काली आर्या (अन्नया कयाइं) किसी एक समय (सरीरवाउसिया) शरीर को संस्कारित करने के स्वभाववाली बन गई इसलिये वह (अभिक्खणं २
'तएणं सा काली अञ्जा अन्नया कयाइ'' इत्यादि
Easil(तएणं ) त्या२५७। ( सा काली अजा) ते ४ा माया ( अन्नया कयाइ) 13 मे मते ( सरीरयाउसिया) शरीरने सारित કરવાના સ્વભાવવાળી બની ગઈ, એટલા માટે તે– (अभिक्खणेर हत्थे धोवइ, पाए धोवेइ सोस धोबइ, मुहं धोवई, थर्णतराई धोबइ,
શ્રી જ્ઞાતાધર્મ કથાંગ સૂત્રઃ૦૩
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