Book Title: Agam 06 Ang 06 Gnatadharma Sutra Part 03 Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti

Previous | Next

Page 806
________________ MO -पाय अनगारधर्मावृतबर्षिणी टी० नु० २ ३०१ अ० १ कालीदेचीवर्धनम् ७२१ दिग्भागम् अत्रकामति, अवक्राम्य स्वयमेव स्वहस्तेनैव आभरणमाल्यालङ्कारम् अवमुञ्चति अवतारयति, अवस्य स्वयमेव स्वहस्तेनैव लोच केशलुचनं करोति कृत्वा यत्रच पार्थोऽहन् पुरुषादानीयस्तबोपरगति, उपागत्य पार्चमहन्त त्रि: कुरखो बन्द ते नमस्यति, वन्दित्वा नमस्यित्वा एत्रयवादीत-आदीसः खलु हे भद'त: लोकः एवम्भनेन प्रकारेण यावत्-एषाऽपि स्वयमेव पार्श्वप्रभुणा प्रचाजिता । अरई वंदइ, नमसइ, दिसा नमंसित्ता, उत्तरपुरस्थिम दिसिभागं अबक्कमह, अवनकमित्ता सयमेव आभरणमल्लालंकार ओमुयइ, ओमुइत्ता, संयमेव लोयं करेइ, करित्ता जेणेव पासे अरिहा पुरिसादा. जीए तेणेव उवागच्छइ, उवागछिया पासं अरई निववृसो वंदइ, नमसइ, यदिशा नर्मसित्ता एवं बासी ) काली कुमारी ने पार्श्वनाथ अरिहाल प्रभु को वंदना एवं नमस्कार किया। वंदना नमस्कार करके फिर वह उत्तर पौरस्त्य दिमाग ईशान कोण की ओर गई। वहां जाकर उसने अपने आप आभरण माल्य एवं अलंकारों को उतार दिया। उत्तार कर अपने हाथों से उसने बालों का लंघन किया-लंघन करके फिर वह जहां पुरुषादानीय पार्श्वनाथ प्रभु विराजमान थे वहाँ आईवहां आकर उसने पार्श्वनाथ अईत को तीनधार चंदन एवं नमस्कार किया और बंदना नमस्कार कर फिर वह उनसे इस प्रकार कहने लगी -(आलिफोां भंते लोए एवं जहा देवाणंदा जाव सयमेव पवाविया (काली कुमारी पास अरहं बंदइ, नमंसइ, बंदित्ता नमसित्ता, उत्तरपुरस्थिम दिसिभागं अवक्कमइ, अमक्कमित्ता, सयमेव आमरणमल्लालंकार ओमुपद, ओमइत्ता सयमेव लोयं करेइ, करिता जेणेव पासे रिहा पुरिसादाणीए तेणेव उवागच्छड उवागच्छिन्ना पासं अरहं तिक्खुमो पंदइ, नमसइ, चंदिसा नमंसित्ता एवं बयासी) કાલી કુપારીએ પાર્શ્વનાથ અરિહંત પ્રભુને વંદના અને નમસ્કાર કર્યા. વદન અને નમસ્કાર કરીને તે ઉત્તર પરિચય દ્વિબાગ ઈશાન કંપની તરફ ગઇ. ત્યાં જઈને તેણે પિતાની મેળે જ અભિરણ, માય અને અલંકારને ઉતાય. ઉતારીને પિતાના હાથ વડે જ તેણે વાળનું લંચન કર્યું. હુંચન કરીને તે જ્યાં પુછવાદનીય પાર્શ્વનાથ પ્રભુ વિરાજમાન હતા ત્યાં આવી. ત્યાં આવીને તેણે પાર્શ્વનાથ અહંતને ત્રણ વાર વંદન અને નમસ્કાર કર્યા. વંદના અને નમસ્કાર કરીને તે તેમને આ પ્રમાણે વિનંતી કરવા લાગી કે ( आलितण भंते ! लोए एवं जहा देवाणंदा जाव सयमेव पन्नानिया-तएण શ્રી જ્ઞાતાધર્મ કથાંગ સૂત્ર:૦૩

Loading...

Page Navigation
1 ... 804 805 806 807 808 809 810 811 812 813 814 815 816 817 818 819 820 821 822 823 824 825 826 827 828 829 830 831 832 833 834 835 836 837 838 839 840 841 842 843 844 845 846 847 848 849 850 851 852 853 854 855 856 857 858 859 860 861 862 863 864 865 866 867