Book Title: Agam 06 Ang 06 Gnatadharma Sutra Part 03 Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti

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Page 756
________________ अनगारधर्मामृतदिणी टी० अ० १९ पुण्डरीक कंठरोकचरित्रम् अध्युपपन्न:-मच्छितो पृद्धः अथितः अध्युपपन्नः राज्यादिषु सर्वथासक्त इत्यर्थः, ' अदुहट्टयसहे' आर्तदुःखार्तवशातः तत्र-आता मनसा दुःखितः, दुःखातः= देहदुःखयुक्तः, वशातः राज्यराष्ट्रान्तः पुराद्यासक्तेन्द्रियवशेन विषयसुखवियोगसम्भावनया पीडितः आर्तध्यानोपरात इत्यर्थः । ' अकामए ' अकामकः अनि छकः-मरणयान्छारहितः, 'अवस्सबसे ' अपस्वयशः अपगतस्वातन्त्र्यः परा. धीनः सन् कालमासे कालं कृत्या 'अहे सत्तमाए' अधः सप्तम्यां पृथिव्याम् तमस्तसः प्रभाख्ये सप्तमे नरके 'उकोसकालट्टिइयंसि' उत्कृष्टकालस्थितिके नरके से भी युक्त हो गये । (तएणं से कंडरीए राया रज्जे य रहे य अंतेउरे य जाय अज्झोपवन्ने अदुहवसट्टे अकामए अवस्सबसे कालमासे कालं किच्चा अहे सत्तमाए पुढवीए उकोसकालटिइयंसि नरयंसी नेरइयत्ताए उपवण्णे) इस तरह दुःखित बने हुए ये कंडरीक राजा राज्य राष्ट्र, एवं अन्तपुर में अध्युपपन्न हो गये इस प्रकार राज्यादिकों में सर्वथा आसक्तिभाव से बंधे हुए वे राजा मन से दुःखित होकर, देह के दुःख से एकक्षण अर्तध्यान में पड़ गये । अन्त में चे, ये नहीं चाहते थे कि मेरी मृत्यु हो जावे-तो भी सांसारिक स्थिति से बन्धे हुए होने के कारण या वेदनाओं से पीडित होने के कारण वे स्वयश नहीं थे परतंत्र थे, इसलिये काल अवसरकाल करके मर कर नीचे तमस्तम प्रभा नाम के सातवें नरक में कि जो उत्कृष्ट काल स्थिति प्रमाण है-अर्थात् ३३ सा (तएणं से क डरीए राया रज्जे य रटे य अंतेउरे य जाय अझोययन्ने अद्र दुहवसट्टे अकामए अवस्सवसे कालमासे कालं किच्चा अहे सत्तमाए पुढवीए, अक्कोसकालद्विइयंसि नरयासि नेरइयत्ताए उववण्णे ) આ પ્રમાણે ખિત થયેલા તે કંડરીક રાજા રાજ્ય, રાષ્ટ્ર અને રણવાસમાં અયુપપન્ન થઈ ગયા એટલે કે વધારે પડતા આસક્ત થઈ ગયા. આ પ્રમાણે રાજ્ય વગેરેમાં સંપૂર્ણપણે આસક્ત ભાવથી બંધાયેલા તે રાજ મનથી દખિત થઈને, શારીરિક કષ્ટથી એક ક્ષણ માટે પણ મુક્તિ નહિ થવાને કારણે વિષય સુખોના વિયેગની સંભાવના બદલ તેમજ રાજ્ય, રાષ્ટ્ર, રણવાસ વગેરેમાં આસક્ત ઇન્દ્રિયના વશમાં હોવાને કારણે આર્તધ્યાનમાં મગ્ન થઈ ગયા છેવટે તેઓ મૃત્યુને ઈચ્છતા નહોતા છતાંએ સાંસારિક વાતાવરણમાં બંધાયેલા હોવાને કારણે અથવા વેદનાઓથી પીડિત હોવાને કારણે તેઓ સ્વવશ હતા નહિ, પરવશ–પરતંત્ર હતા, એથી કાળ અવસરે કાળ કરીને, અન્ય પામીને-નીચે તમસ્તમપ્રભા નામના સાતમાં નરકમાં કે જે ઉત્કૃષ્ટ કાલ श्री शताधर्म थांग सूत्र :03

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