Book Title: Agam 06 Ang 06 Gnatadharma Sutra Part 03 Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti

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Page 766
________________ अनगारधर्मामृतवर्षिणी टीका अ० १९ पुंडरीक-कंडरीकचरित्रम् ७५१ सुधर्मास्वामी कथयति-एवं खलु हे जम्बूः ! श्रमणेन भगवता महावीरेण आदिकरेण तीर्थकरेण यावत् सिद्धिगतिनामधेयं स्थानं संपाप्तेन एकोनविंशतितमस्य ज्ञाताध्ययनस्य अयमर्थः प्रज्ञप्तः । ज्ञातश्रुतस्कन्धं समापयन् सुधर्मा पुनः कथययि-एवं खलु हे जम्बूः ! श्रमणेन भगवतां महावीरेण यावत् सिद्धिगतिनामधेयं स्थानं संप्राप्तेन षष्ठस्य अङ्गस्य-षष्ठाइसम्बन्धिनः प्रथमस्य श्रुतस्कन्धस्य अयमर्थः पूर्वोक्तरूपो भावः प्रज्ञप्तः भगयता कथितः । 'त्ति बेमि' इति ब्रवीमि, व्याख्या पूर्ववत् ॥ सू०७ ॥ को नहीं पाता है और चतुर्गतियाले इस संसार कान्तार को पुडरीक अनगार की तरह पार करनेवाला हो जाता है । ( एवं खलु जंबू ! समणेणं भगवया महावीरे णं आइगरेणं तित्थगरेणं जाय सिद्ध गई नामधेज्जं ठाणं संपत्तणं एगूणवीसइमस्स नायज्झयणस्स अयमढे पण्णत्ते, एवं खलु जंबू ! समणेणं भगयया महावीरे णं जाय सिद्धिगइणामधेज्जं ठाणं संपत्ते णं छठुस्स अंगस्स पढमस्स सुयक्खंधस्स अयमढे पण्णत्ते त्तिबेमि ) अब श्री सुधर्मा स्वामी कहते हैं कि हे जंबू ! आदिकर तीर्थकर यावत् सिद्धि गति नामक स्थान को प्राप्त हुए श्रमण भप्रधान महावीर ने १९ वे ज्ञाताध्ययन का यह पूर्वोक्त रूप से अर्थ प्ररूपित किया है। इस तरह हे जंबू ! श्रमण भगवान महावीर ने कि जो सिद्धिगति नामक स्थान को अच्छी तरह प्राप्त कर चुके हैं, छठे अंग के प्रथम श्रुतस्कंध का यह पूर्वोक्त रूप से भाव प्रतिपादित किया है। ऐसा मैने प्रभु के कहे अनुसार ही यह हे जंबू ! तुमसे निवेदित किया है। પ્રાપ્ત કરતું નથી અને ચતુર્ગતિવાળા આ સંસાર કતારને પુંડરીક અનગારની જેમ પાર કરનાર થઈ જાય છે. ( एवं खलु जंबू ! समणेणं भगवया महावीरेणं आइगरेणं तित्थगरेणं जाय सिद्धगई नामधेनं ठाणं संपत्तेणं एगूणवीस इमस्स नायज्झयणस्स :अयमढे पष्णत्ते, एवं खलु जंबू ! समणेणं भगवया महावीरेणं जाय सिद्धिगइणामधेज्ज ठाणं संपत्तेणं छदुस्स अंगरस पढमस्स सुयक्खंधस्स अयमढे पण्णत्ते तिबेमि) હવે શ્રી સુધર્મા સ્વામી કહે છે કે હે જંબૂ! આદિકર તીર્થકર યાવત સિદ્ધગતિ નામક સ્થાનને મેળવી ચુકેલા શ્રમણ ભગવાન મહાવીરે ઓગણીસમાં જ્ઞાતાધ્યયનનો આ પૂર્વોક્ત રીતે અર્થ પ્રરૂપિત કર્યો છે. આ પ્રમાણે છે જબૂ! શ્રમણ ભગવાન મહાવીર કે જેમણે સિદ્ધગતિ નામક સ્થાનને સારી રીતે પ્રાપ્ત કરી લીધું છે-છઠ્ઠા અંગના પ્રથમ શ્રુતકને આ પૂર્વોક્ત રૂપમાં ભાવ પ્રતિપાદિત કર્યો છે. જ બૂ! આવું મેં પ્રભુના કહ્યા મુજબ જ તમને કહ્યું છે. श्री शतधर्म अथांग सूत्र :03

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