Book Title: Agam 06 Ang 06 Gnatadharma Sutra Part 03 Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti

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Page 798
________________ अनगारधर्मामृतयर्षिणी टी० श्रु० २ व० १ अ० १ कालीदेवीवर्णनम् ७८३ 'जहा दोबई जाव' यथा द्रौपदी यायत्-द्रौपदीवत् छत्रादीन् तीर्थङ्करातिशयान् दृष्ट्वा धार्मिका यानप्रबरोदवतरति, पश्चाभिगमपूर्वकं भगवत्समीपे गत्वा पन्दित्या नमस्यित्वा च भगवन्तं 'पज्जुवासइ' पर्युपास्ते । ततः खलु पाश्वोऽहन पुरुषादानीयः काल्यै दारिकायै तस्यां च महातिमहालयायां पर्ष दि धर्म कथयति ततः खलु सा काली दारिका पार्श्वस्याहंतः पुरुषादानीयस्यान्तिके धर्म श्रुत्वा निशम्य हृष्ट यावद् हृदया पार्थ मर्हन्तं पुरुषादानीयं त्रिकृत्वो वन्दते नमस्यति, वन्दित्या वह उस पर आरूढ हो गई। आरूढ होकर वह वहां से चली। ज्योंही उसने द्रौपदी की तरह तीर्थकरातिशयरूप छत्रादि विभूति को देखा तो यह देखकर उस धार्मिक यानप्रयर से नीचे उतरी। और पञ्च अभिगमन पूर्वक भगवान के पास जाकर उसने उनको चंदना की, उन्हें नमस्कार किया-चंदना नमस्कार करके फिर उसने उनकी पर्युपासना की। (तएणं पासे अरहा पुरिसादाणीए कालीए दारियाए तीसे य महइमहालयाए परिसाए धम्मो कहिओ) पुरुषादानीय अहंत प्रभु पार्श्वनाथने उस काली दारिकाको उस विशाल परिषदाके बीचमें धर्मकथा सुनाई। (तएणं सा काली दारिया पासस्स अरहओ पुरिसादाणीयस्स अंतिए धम्म सोच्चा णिसम्म हट्ट जाव हियया पासं अरहं पुरिसादाणीयं तिवखुत्तो बंदइ नमंसइ) पुरुषादानीय उन अर्हत पार्श्वनाथ प्रभु से धर्म को सुनकर और हृदय में अवधारण कर यह काली दारिका बहुत अधिक हर्षित ત્યાંથી રવાના થઈ. દ્રૌપદીની જેમ તેણે જ્યારે તીર્થંકરાતિશય રૂપ છત્ર વગેરે વિભૂતિને જોઈ કે તાંની સાથે જ તે ધાર્મિક યાન-પ્રવરમાંથી નીચે ઉતરી પડી. અને પંચ અભિગમનપૂર્વક ભગવાનની પાસે જઈને તેમને વંદના કરી, તેમને નમસ્કાર કર્યા. વંદના અને નમસ્કાર કરીને તેણે તેમની પર્યપાસના કરી. ત્યારપછી (तएणं पासे अरहा पुरिसादाणीए कालीए दारियाए तीसे य महइमहालयाए परिसाए धम्मो कहिओ) પુરુષાદાનીય અહજત પ્રભુ પાર્શ્વનાથે તે કાલી દારિકાને તે વિશાલ પરિપદાની સામે ધર્મકથા સંભળાવી. ( तएणं सा काली दारिया पासस्स अरहओ पुरिसादाणीयस्स अंतिए धम्म सोच्चा णिसम्म हट्ठ जाय हियया पासं अरहं पुरिसादाणीयं तिक्खुत्तो बंदइ नमसइ) પુરુષાદાનીય તે અહંત પાર્શ્વનાથ પ્રભુની પાસેથી ધર્મને સાંભળીને અને તેને હદયમાં અવધારિત કરીને તે કાલી દારિકા બહુ જ વધારે હર્ષિત श्री शताधर्म अथांग सूत्र:03

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