Book Title: Agam 06 Ang 06 Gnatadharma Sutra Part 03 Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti

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Page 783
________________ - ७६८ ज्ञाताधर्मकथाऽसूत्र पादपीठात् 'पञ्चोरुहह ' प्रत्यवरोहति-अवतरति, प्रत्यवरुह्य अवतोर्य ‘पाउयातो' पादुके 'ओमुयइ ' अपमुश्चति-परित्यजति, मुक्त्या तीर्थकराभिमुखी सतीसप्ताटपदानि 'अणुगच्छइ ' अनुगच्छति-सम्मुखं गच्छति, अनुगम्य याम जानु * अंचेइ' अञ्चति-उर्वीकरोति, अश्चित्या-उर्चीकृत्य दक्षिणं जानु धरणितले 'निह९' निहत्य-स्थापयित्या ‘तिक्खुत्तो' त्रिः कृत्या त्रिवारम् ' मुद्धाणं' मूर्धानं मस्तकं धरणितले निवेशयति लगयति, निवेश्य ईसिं पच्चुण्णमइ ' ईपसत्यवनमति-स्तोकं शिरोनामयति, प्रत्ययनम्य 'कड यतुडियर्थभियाओ' कटकत्रुटित स्तम्भिते कटके-करभूषणे तुत्रितेबाहुभूषणे तैः स्तम्भिते अवष्टब्धे ' भुयाओ' भुजे 'साहरइ ' संहरति एकत्रीकरोति, संहृत्य ' करयल जाय कटु' करतलपरिगृहीतं शिर आवर्त मस्तकेऽञ्जलि कृत्या एवमयादीत्-' नमोत्थुणं' इत्यादिनमोऽस्तु खलु अर्हद्भ्यः यावद् सिद्धिगतिनामधेयं स्थानं सम्पाप्तेभ्यः, नमोऽस्तु से उठी-और उठकर वह पादपीठ से होकर नीचे आई-नीचे आकर उसने दोनों पादुकाओं को पैरों में से उतार दिया। उतार कर फिर वह तीर्थकरराधिष्ठित दिशा की ओर सात आठ पद आगे गई। यहां आकर उसने अपने वाम जानु को ऊंचा किया-ऊँचा कर के फिर दक्षिण जानु को नीचे धरणीतल में रखा-रखकर फिर तीन बार अपने मस्तक को नीचे भूमिपर लगाया-लगाकर फिर वह कुछ झुकी-शिर को नीचेनयाया। बाद में कटक और त्रुटित से भूषित भुजाओं को एकत्रित किया-एकत्रित करके फिर उसने उन दोनों हाथोंकी अंजलि बनाई-और उसे मस्तक पर आदक्षिण प्रदक्षिण कर इस प्रकार कहो ( नमोत्थुणं अरहंताणं जाव संपन्नाणं नमोत्थुणं समणस्स भगवओ महावीरस्स ઉપર થઈને નીચે આવી. નીચે આવીને તેણે બંને પાદુકાઓને પગમાંથી ઉતારી દીધી. ઉતારીને તે તીર્થકર જે દિશા તરફ વિરાજમાન હતા તે દિશા તરફ સાત-આઠ ડગલાં આગળ ગઈ. ત્યાં જઈને તેણે પિતાના ડાબા ઢીંચણને ઉો કર્યો. ઊંચે કરીને પછી તેણે જમણા ઢીંચણને નીચે પૃથ્વી ઉપર ટેકવ્ય ટેકવીને તેણે ત્રણ વખત પોતાના મસ્તકને નીચે પૃથ્વી ઉપર ટેકવ્યું, ટેકવીને તે ઘડી નમી-મસ્તકને નીચે નમાવ્યું. ત્યાર પછી તેણે કટક અને ત્રુટિતથી વિભૂષિત ભુજાઓને ભેગી કરી, ભેગી કરીને તેણે તેઓ બંનેની અંજલિ બનાવી અને તેને મસ્તક ઉપર આદક્ષિણ પ્રદક્ષિણ-પૂર્વક ફેરવીને આ પ્રમાણે કહ્યું, (नमोत्थुणं अरहंताणं जाव संपत्ताणं नमोत्थुणं समणस्स भगवओ महावीरस्स जाव संपाविउकामस्स वदामि णं भमवंतं तत्थगयं इह गया पासउ मं भगवं શ્રી જ્ઞાતાધર્મકથાંગ સૂત્રઃ ૦૩

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