Book Title: Agam 06 Ang 06 Gnatadharma Sutra Part 03 Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti

Previous | Next

Page 795
________________ ७८० - ज्ञाताधर्मकथासूत्र साहस्रीभिः साई संपरितः यावत् आम्रशालयने समयमृतः । परिषन्निर्गता यावत् पर्युपास्ते । ततः खलु सा काली दारिका अस्याः भगवत्पार्श्वप्रभुसमागमनरूपायाः कथावाचार्तायाः ‘लट्ठा' लब्धार्था भगवानत्रसमयमृतः, इत्येवं. रूपार्थपाप्ता 'हट जाय हियया' हृष्ट यापहृदया-हृष्टतुष्टचित्तानन्दिता प्रीतमनस्का हर्षवशविसर्पहृदया सती यौव अम्बापितरौ तत्रैवोपागच्छति, उपागत्य 'करयल जाय' करतलपरिगृहीतं शिर आवर्त दशनवं मस्त केऽञ्जलिं कृत्या एवमयादीत्एवं खलु हे अम्ब तातौ ! पार्थोऽर्हन पुरुषादानीयः आदिकरो.यावत्-आम्रशालबने चैत्ये यथा-प्रतिरूपमवग्रहमयगृह्य संयमेन तपसाऽऽत्मानं भावयन् विहरति आस्ते, तद्गच्छामि खलु हे अम्बतातौ ! युष्माभिरभ्यनुज्ञाता सती पार्श्वस्यासद्धि संपरिघुडे जाव अंबलसालघणे समोसढे ) उस काल में और उस समय में पुरुषादानीय पुरुषश्रेष्ठ-आदिकर पार्श्वनाथ अर्हत प्रभु जो श्री वर्द्धमान स्वामी जैसे थे-सोलह हजार श्रमणों के तथा ३८, हजार आर्यिकाओं के साथ तीर्थकर परंपरानुसार विहार करते हुए उस आम्रशालयन में आये। भगवान महावीर और पार्श्वनाथ प्रभु की शरीरावगाहना में विशेषता केवल इतनी ही थी कि उनका शरीर सात हाथ ऊँचा था और पार्श्व प्रभु का शरीर ९ हाथ ऊँचा था। (परिसा णिग्गया, जाय पज्जुयासइ, तएणं सा दारिया इमीसे कहाए लट्ठा समाणी हट्ठ जाय हियया जेणेव अम्मापियरो तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता करयल जाय एवं ययासी-एवं खलु अम्मयाओ पासे अरहा पुरिसा. दाणीए आइगरे जाव विहरइ, तं इच्छामि णं अम्मयाओ! तुब्भेहिं साहस्सीहिं सद्धिं संपरिघुडे जाव अंबसालपणे समोसढे ) । તે કાળે અને તે સમયે પુરુષાદાનીય-પુરુષ શ્રેષ-આદિકર પાર્શ્વનાથઅહત પ્રભુ-જેઓ શ્રી વાદ્ધમાન સ્વામી જેવા હતા–સેળ હજાર શ્રમણે તેમજ ૩૮ હજાર આયિકાઓની સાથે તીર્થંકર પરંપરા મુજબ વિહાર કરતાં તે આમ્રશાલ વનમાં આવ્યા. ભગવાન મહાવીર અને પાર્શ્વનાથ પ્રભુની શરી. રાવગાહનામાં વિશેષતા ફક્ત આટલી જ છે કે તેમનું શરીર સાત હાથ જેટલું ઊંચું હતું અને પાર્શ્વ પ્રભુનું શરીર નવ હાથ ઊંચું હતું. (परिसा णिग्गया, जाय पज्जुवासइ, तएणं सा काली दारिया इमीसे कहाए लदूधट्ठा समाणी हट्ट जाय हियया जेणेत अम्मापियरो तेणेव उयागच्छइ, उवागच्छित्ता करयल जाय एवं बयासी-एवं खलु अम्मयाओ ! पासे अरहा पुरिसादाणीए आइगरे जाय विहरइ, तं इच्छामि णं अम्मयाओ ! तुम्भेहिं अन्भ श्री शताधर्म अथांग सूत्र:03

Loading...

Page Navigation
1 ... 793 794 795 796 797 798 799 800 801 802 803 804 805 806 807 808 809 810 811 812 813 814 815 816 817 818 819 820 821 822 823 824 825 826 827 828 829 830 831 832 833 834 835 836 837 838 839 840 841 842 843 844 845 846 847 848 849 850 851 852 853 854 855 856 857 858 859 860 861 862 863 864 865 866 867