Book Title: Agam 06 Ang 06 Gnatadharma Sutra Part 03 Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti

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Page 707
________________ ६९२ ज्ञाताधर्मकथाङ्गसूत्रे धपणेणं सत्थवाहेणं एवं वुत्ता समाणा एयमहं पडिसुर्णेति । तणं धणे सत्थवाहे पंचहिंपुत्तेहिं सद्धिं अरणिं करेइ, करिता, सरगं च करेइ, करिता, सरएणं अणि महेइ, महिता अरिंगपाडेइ, पाडित्ता, अरिंग संधुक्खेइ, संधुक्खित्ता दारुयाइं परिक्खेवेइ, परिक्खवित्ता, अग्गिपज्जालेइ, पज्जालिचा, सुंसुमाए दारियाए मंसं च सोणियं च आहारोंति । ते णं आहारेण अवित्था समाणा रायगिहं नयरं संपत्ता मित्तणाइ० अभिसमणागया तस्स य विउलस्स धणकणगरयण जाव आभागी जाया या होत्था । तणं से धण्णे सत्थवाहे सुसुमाए दारियाए बहूई लोइयाई जाव विगयसोए जाए यावि होत्था || सू०८ ॥ टीका – ' तरणं से' इत्यादि । ततः खलु स धन्यः सार्थवाहः पञ्चभिः पुत्रैः सह आत्मषष्ठः चिलातं ' परिधाडेमाणे २ ' परिधावन् २ = चिलातं ग्रहीतुकामस्तपृष्ठतोऽनुधावन् 'तण्हाए छुहाए य ' तृष्णया क्षुधया च ' संते ' श्रान्तः, - मनसा खिन्नः, ' तंते ' तान्तः शरीरेण क्रांतः, 'परितंते' परितान्तः मनसा शरीरेण च -: तरणं से धण्णे सत्थवाहे । इत्यादि । टीकार्थ - (तए) इसके बाद ( पंचहि पुतेहि सद्धि अप्प से धणे सत्थवाहे) पांचो पुत्रों के साथ छठा बना हुआ वह धन्यसार्थवाह ( चिलायं परिधाडेमाणे २) चिलातचोर को पकड़ ने की इच्छा से उस के पीछे २ बार बार दौडता हुआ, ( तव्हाए छुहाए य संते तंते परितंते नो संचाइए चिलाये चोरसेणावई साहित्थि गिव्हिन्तए) पिपासा और 'तएण से धणे सत्थवाहे' इत्यादि टीडार्थ - ( तएणं ) त्यारपछी ( पंचहि पुत्तेहिं सद्धि अध्यछट्टे से घण्णे सत्यवाहे) यांचे पुत्रानी साथै छठ्ठो ते धन्य सार्थवाह ( चिलायं परिधाडेमाणे २ ) ચિલાત ચારની પાછળ પાછળ તેને પકડી પાડવા માટે વારવાર દોડતાં દોડતાં ( तन्हाए छुहाए य संते तंते परितते नो संचाएह चिलायें चोरसेणावई साहस्थि गिण्डित्तए) तस्स भने लूजथी श्रांत थ गयो, भिन्न मनी गयी, तांत थ શ્રી જ્ઞાતાધર્મ કથાંગ સૂત્ર ઃ ૦૩

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