Book Title: Agam 06 Ang 06 Gnatadharma Sutra Part 03 Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti

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Page 753
________________ - --- - - --- - -- ७३८ जाताधर्मकथासूत्र गृहाति, गृहीत्या, इममेतद्रूपं वक्ष्यमाणमभिग्रहं प्रतिज्ञाविशेषम् अभिगृहाति= करोति अभिग्रहस्वरूपमाह-कल्पते, मे स्थविरान् वन्दित्वा नमस्यित्या स्थविराणामन्तिके चातुर्यामं धर्मम् ' उपसंपज्जित्ताणं ' उपसंपद्य-स्वीकृत्य, ततः पश्चात्आहारमाहत्तुम् इति कृत्वा निश्चित्य, इमं च एतद्रूपम् अभिग्रहम् , अभिगृह्य खलु पुण्डरी किण्याः प्रतिनिष्क्राम्यति निस्सरति, प्रतिनिष्क्रम्य 'पुव्याणुपुयि ' पूर्वानुपूर्ध्या चरन् , ग्रामानुग्रामं द्रयन् यत्र स्थबिरा भगवन्तस्तव प्राधारय-गमनाय गन्तुं प्रस्थितः ॥ सु०५॥ थेराणं अंतिए चाउज्जामं धम्मं उपसंपज्जित्ताणं, तो पच्छा आहारं आहरित्तए) बाद में उन्होंने इस प्रकार अभिग्रह धारण किया कि जबतक मैं स्थविर भगवंतो को वंदना नमस्कार कर उनके पाससे चातुर्याम धर्मको धारण नहीं कर लूंगा, तबतक मैं आहार पानी ग्रहण नहीं करूँगा उनके पास चातुर्याम धर्म धारण करके ही आहार ग्रहण करूँगा (त्ति कटु इमंच एयाख्यं अभिग्गहं अभिगिणिहत्ता णं पांडरिगिणीए पडिनिक्खमइ, पडिनिक्खमित्ता पुव्याणुपुचि चरमाणे गामाणुगामं दइज्जमाणे जेणेच थेरा भगवंतो तेणेव पहारेत्थ गमणाए ) इस प्रकार का यह अभिग्रहण कर वे उस पुंडरीकिणी नगरी से निकले और निकल कर तीर्थंकर परम्परानुसार विहार करते हुए एवं एक ग्राम से दूसरे ग्राम में विचरण करते हुए वे उस ओर प्रस्थित हुए कि जहां स्थविर भगवंत विराजमान थे ॥ सूत्र ५॥ (गेण्हिता इम एयारूव अभिग्गह अभिगिण्हइ, कापइ, मे थेरे वदित्ता णमंसित्ता थेराणं अतिए चाउज्जाम धम्म उवसंपज्जित्ताणं, तओपच्छा आहारं आहरित्तए) ત્યારબાદ તેમણે આ જાતનો અભિગ્રહ ધારણ કર્યો કે જ્યાં સુધી હું સ્થવિર ભગવંતેને વંદના તેમજ નમસ્કાર કરીને તેમની પાસેથી ચાતુર્યામ ધર્મને ધારણ નહિ કરું ત્યાં સુધી હું આહાર પણ ગ્રહણ કરીશ નહિ. તેમની પાસેથી ચાતુર્યામ ધર્મને ધારણ કરીને જ હું આહાર ગ્રહણ કરીશ. (त्ति कटु म च एयारूव अभिग्गह अभिगिण्हित्ताणं पोंडरिगिणीए पडिनिक्खमइ, पडिनिक्खमित्ता पुव्वाणुपुचि चरमाणे गामाणुगामं दूइज्जमाणे जेणेव थेरा भगवतो तेणेव पहारेत्थ गमणाए ) । આ પ્રમાણે તે અભિગ્રહને મનમાં ધારણ કરીને તેઓ તે પુંડરીકિણી નગરીની બહાર નીકળ્યા અને નીકળીને તીર્થંકર પરંપરા મુજબ વિહાર કરતાં કરતાં અને આ પ્રમાણે એક ગામથી બીજે ગામ વિચરણ કરતાં કરતાં તેઓએ જ્યાં સ્થવિર ભગવંતો વિરાજમાન હતા તે તરફ પ્રસ્થાન કર્યું. સૂપા श्री शताधर्म अथांग सूत्र : 03

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