Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 10 Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
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प्रमेयचन्द्रिका टीका श० १२ उ०४ सू०१ परमाणुपुद्गलनिरूपणम् २९ पञ्चधापि क्रियते, तत्र 'दुहा कज्जमाणे एगयओ परमाणुपोग्गले, एगपो चउप्पएसिए खधे भयइ' पञ्च प्रदेशिकः स्कन्धो द्विधा क्रियमाणः, एकतः-एकमागे परमाणुपुद्गलो भवति, एकतः--अपरभागे चतुष्पदेशिकः स्कन्धो भवति, ' अहवा एगयओ दुप्पएसिए खंधे भवइ, एगयो तिप्पएसिए खधे भवई' अथवा एकतः-एकभागे द्विप्रदेशिकः स्कन्धो भवति, एकतः-अपरभागे त्रिप्रदेशिकः स्कन्धो भवति, 'तिहा कज्जमाणे एगयओ दो परमाणुपोग्गला, एगयओ तिप्पएसिर खंधे भवइ' अथवा एकतः-एकमागे द्विपदेशिकः स्कन्धो भवति, एकतःअपरभागे त्रिप्रदेशिकः स्कन्धो भवति, 'तिहा कज्जमाणे एगयो दो परमाणुपोग्गला, एगयओ तिप्पएसिए खंधे भवई' त्रिधा क्रियमाणः एकतःएकभागे द्वौ परमाणुपुद्गलौ भवतः, एकतः-अपरमागे त्रिप्रदेशिकः स्कन्धो भवति, 'अहवा विकज्जइ' जब इस पंचादेशिक खंध के विभाग किये जाते हैं तो वे विभाग दो भी हो सकते हैं, तीन भी हो सकते हैं, चार भी हो सकते हैं और पांच भी हो सकते हैं । 'दुहा कन्जमाणे एगयो परमाणुपोग्गले, एगयओ चउप्पएसिए खंधे भवई' जर पंचप्रदेशिक स्कन्ध दो विभागों में विभक्त किया जाता है-तब एक विभाग परमाणुपुद्गल रूप होता है, और दूसरा विभाग चतुष्प्रदेशिक स्कन्धरूप होता है। 'अहवाएगयओ दुप्पएसिए खंधे भवइ, एगयओ तिप्पएसिए खंधे भवई' अथवा-एक भाग में द्विप्रदेशिक स्कंध होता है और द्वितीय भाग में त्रिप्रदेशिक स्कंध होता है । 'तिहा कज्जमाणे एगयो दो परमाणुपोगला, एगयओ तिप्पएसिए खंधे भवइ' जब इस पंचप्रदेशिक स्कंध को तीन विभागों में विभक्त किया जाता है-तब दो विभाग एक २ परमाणुपुद्गलरूप होते हैं और तीसरा विभाग त्रिप्रदेशिक एक स्कन्धरूप हो વિભાગ કરવામાં આવે છે ત્યારે તેના બે વિભાગ પણ થઈ શકે છે, ત્રણ विमा ५५ श छ. “दुहा कज्जमाणे एगयओ परमाणुपोग्गले, एगयओ चउपएसिए खंधे भइ" च्यारे ५यप्रशि: २४ धने में विभागमा वित કરવામાં આવે છે. ત્યારે એક વિભાગ એક પરમાણુ પુલરૂપ અને બીજે विलास यतुशि २४५३५ भने छ. “ अहवा-एगयओ दुप्पएसिए खंधे भवह, एगयओ तिप्पएसिए खंधे भवइ" अथवा-विशि४ २४५३५ मे भाग भने निशि: २४५३५ भात मानिन्न थाय छे. “ तिहा कज्जमाणे एगयओ दो परमाणुपोगाला, एगयओ तिप्पएसिए खंधे भवइ' यारे ५। ५५ પ્રાદેશિક સ્કંધને ત્રણ વિભાગમાં વિભક્ત કરવામાં આવે છે, ત્યારે તેના બે વિભાગો એક એક પરમાણુ પુદ્ગલ રૂપ હોય છે અને ત્રીજો વિભાગ ત્રિપ્રદે
શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૧૦