Book Title: Adhyatma Chetna
Author(s): Nitesh Shah
Publisher: Kundkund Kahan Tirth Suraksha Trust

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Page 25
________________ 14 कविवर द्यानतराय के साहित्य में प्रतिबिम्बित अध्यात्म चेतना साररूप में अत्यन्त सुन्दर व सुव्यवस्थित रूप में लिखा है । अतः कण्ठाग्र करने में बड़ी सुविधा रहती है । आज भी अनेक व्यक्तियों को इसके अंश याद हैं, जो इसकी लोकप्रियता का प्रमाण है । " कम से कम शब्द, सरल भाषा, मनहर पद, छन्द और अलंकारों के सौष्ठव से युक्त कवि की यह रचना जो अपना साहित्यिक महत्त्व रखती है, वह हिन्दी साहित्य के कवियों में दुर्लभ है करणानुयोग के शुष्क एवं जटिल विषय पर लेखनी चलाकर उसे सफलता के साथ कविताबद्ध करने का कवि का साहस अत्यन्त श्लाघनीय है । 1 चरचाशतक में साहित्यिक सौन्दर्य की अभिश्री मन्दाकिनी तरंगित सरिता की भाँति निरंतर प्रवाहित प्रतीत होती है, साथ ही इस अभिनव अभिव्यक्ति के पृष्ठ में सैद्धान्तिक तथ्य का सुदृढ़ गढ़ भी है। धार्मिक मान्यतायें और पूर्वाचार्यों के ज्ञानालोक में जो प्रतिभासित सामग्री इसमें है, वह आधुनिक विज्ञान के युग में चाहें हमारे मस्तिष्क में न उतरे, तथापि इससे इसका महत्त्व कम नहीं हो जाता । यह युग विज्ञान का है, आत्मज्ञान का नहीं। जिसके अभाव में मानव अज्ञान अन्धकार में डूब रहा है। जो कुछ इस पुस्तक में है, वह विज्ञान की वस्तु नहीं, इसके परे इसकी पहुँच के बाहर की है। हमारी ससीम शक्तिवाली आँखें वहाँ तक नहीं पहुँच सकतीं; अतएव आज के युग में यह तर्क की अपेक्षा श्रद्धा की वस्तु अधिक है । 1 चरचाशतक में भारतीय परम्परा के अनुरूप मंगलाचरण से ग्रंथराज का प्रारंभ होता है । अपने इष्ट की स्तुति के द्वारा कवि उसकी विशिष्टताओं का वर्णन करता है । वह लक्षणहीन इष्ट नहीं मानता। उसके इष्ट का मापदण्ड एक कसौटी है, जिसे वह गुणों के रूप में व्यक्त करता है और उसकी वन्दना कर अपना कल्याण समझता है । संपूर्ण लोकालोक जिनके ज्ञान में झलकता है ऐसे श्री अरहंत को नमस्कार कर कवि लोक- अलोक का वर्णन क्रमशः करता है । उनके घनफल स्वरूप आदि पर, 06 काल, 14 गुणस्थान, कर्मों की 148 प्रकृतियाँ, मानुषोत्तर पर्वत का परिमाण, 169 प्रधान पुरुष, पंच त्रिभंगी आदि विषयों पर प्रकाश डालता है । 2 अंक गणना के प्रकार वैशिष्ट्य को समझाते हुए उन्होंने 11 भेद किये हैं। तीन लोक के अकृत्रिम चैत्यालयों और अढ़ाई द्वीप के ज्योतिष मंडल आदि का भी वर्णन किया गया है। आयु कर्म बंध के नौ भेद, प्रमाद -

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