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कविवर द्यानतराय के साहित्य में प्रतिबिम्बित अध्यात्म चेतना
_ 59 उसे प्राप्त करने से अच्छा तो यह है कि हम सियार बनकर वृन्दावन के सुन्दर जंगल में विचरण करें।
__ न्याय ने मोक्ष को आनन्द से शून्य माना है, उसका कहना है कि आनन्द दुःख से मिश्रित रहता है। दुःख के अभाव में आनन्द का भी अभाव होता है, परन्तु नैयायिक यहाँ भूल जाता है कि आनन्द सुख से भिन्न है। मोक्ष में जिस आनन्द की प्राप्ति होती है, वह सांसारिक दुख और सुख से परे है, अतः मोक्ष को आनन्दमय मानना भ्रामक नहीं है।
नैयायिकों को इन कठिनाइयों से आगे चलकर अवगत होता है कि नव्य-नैयायिकों ने मोक्ष को आनन्दमय अवस्था माना है, परन्तु मोक्ष को आनन्दमय मानना न्याय के आत्मा सम्बन्धी विचार से असंयत है। इसे मानने के लिए आत्मा को स्वरूपतः चेतन मानना आवश्यक है।
निष्कर्षतः न्यायदर्शन को अध्यात्म विद्या या मोक्ष का शास्त्र नहीं मानना और यह कहना कि न्याय, तत्त्वज्ञान और मोक्ष को छोड़कर केवल वाद-विज्ञान में ही कौशल प्राप्त करने का ही उसका लक्ष्य है- न्याय संगत नहीं है। न्यायदर्शन में वर्णित मोक्ष का स्वरूप तथा उसको प्राप्त करने के साधन एवं जीवनमुक्ति की चर्चा के आधार पर यह अधिकार के साथ कहा जा सकता है कि न्यायदर्शन भी उतना ही आध्यात्मिक दर्शन है।29
(घ) वैशेषिक दर्शन में अध्यात्म का स्वरूप भारतीय दार्शनिक सम्प्रदायों को आस्तिक और नास्तिक वर्गों में विभाजित किया गया है। वैशेषिक दर्शन भारतीय विचारधारा में आस्तिक दर्शन कहा जाता है, क्योंकि वह अन्य आस्तिक दर्शनों की तरह वेद की प्रामाणिकता में विश्वास करता है। इस दर्शन का प्रणेता कणाद को ठहराया जाता है। उनके विषय में कहा जाता है कि वे अन्न-कणों को खेत से चुनकर अपना जीवन निर्वाह किया करते थे, इसीलिए उनका नाम कणाद पड़ा-ऐसा विद्वानों के द्वारा बताया जाता है। कणाद का असल नाम उलूक था, इसी कारण वैशेषिक दर्शन को कणाद अथवा औलूक्य दर्शन की भी संज्ञा दी जाती है।30
___ वैशेषिक दर्शन को वैशेषिक दर्शन कहलाने का कारण यह बतलाया जाता है कि इस दर्शन में विशेष नामक पदार्थ की व्याख्या की गई है। विशेष को मानने के कारण ही इसे 'वैशेषिक' कहा जाता है |