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62 कविवर द्यानतराय के साहित्य में प्रतिबिम्बित अध्यात्म चेतना - (3) प्रत्येक व्यक्ति को सुख-दुःख की अनुभूति होती है। इससे सिद्ध होता है कि सुख-दुःख किसी सत्ता के विशेष गुण हैं। सुख-दुःख, पृथ्वी, जल, कयु, अग्नि, आकाश, मन, दिक और काल के गुण नहीं हैं। अतः सुख-दुःख आत्मा ही के विशेष गुण हैं।
(4) नवजात शिशु जन्म के साथ-ही-साथ हँसता और रोता है। नवजात शिशु की ये अनुभूतियाँ सिद्ध करती हैं कि इस जीवन के पूर्व भी उसका अस्तित्व था। इससे आत्मा की सत्ता प्रमाणित होती है।
- परमात्मा को ईश्वर कहा जाता है। ईश्वर की चेतना असीमित है, जबकि जीव की चेतना सीमित है। वह पूर्ण है, वह दयावान है। ईश्वर ने विश्व की सृष्टि की है, ईश्वर ने वेद की रचना की है। ईश्वर जीवात्मा को उनके कर्मों के अनुरूप सुख-दुःख प्रदान करता है, ईश्वर कर्म फलदाता है। ईश्वर के अस्तित्व को प्रमाणित करने के लिए ईश्वर की स्थापना हुई है। ईश्वर के अस्तित्व को अदृष्ट नियम की व्याख्या के लिए भी माना गया है। ईश्वर अदृष्ट नियम का संचालक है। वैशेषिक श्रृति के आधार पर ईश्वर के अस्तित्व को प्रमाणित करता है।
वैशेषिक के द्रव्यों का वर्गीकरण भौतिकवादी नहीं है, क्योंकि वह भौतिक द्रव्यों के अतिरिक्त आत्मा की सत्ता में विश्वास करता है। वैशेषिक के द्रव्यों का वर्गीकरण अध्यात्मवादी भी नहीं कहा जा सकता, क्योंकि वह भौतिक द्रव्यों की सत्ता स्वीकार करता है। वैशेषिक का द्रव्य-विचार वस्तुवादी है। वस्तुवाद उस दार्शनिक सिद्धान्त को कहा जाता है, जो वस्तुओं का अस्तित्व ज्ञाता से स्वतन्त्र मानता है। वैशेषिक का द्रव्य-वर्गीकरण वस्तुवादी कहा जाता है, क्योंकि वह द्रव्यों की सत्ता को ज्ञाता से स्वतन्त्र मानता है। वैशेषिक का द्रव्य-विचार अनेकवाद का समर्थन करता है। वैशेषिक द्रव्यों की संख्या अनेक मानता है। द्रव्य नौ प्रकार के होते हैं -पृथ्वी, जल, वायु, अग्नि, आकाश, दिक्, काल, आत्मा और मन।।
इसीलिए वैशेषिक के द्रव्य का वर्गीकरण अनेकवादी कहा जाता है। सारांशतः न्याय और वैशेषिक में आत्मा के विषय में कोई उल्लेखनीय मतभेद नहीं है।
(ङ) सांख्य दर्शन में अध्यात्म निरूपणा सांख्य दर्शन भारत का अत्यधिक प्राचीन दर्शन कहा जाता है। इसकी प्राचीनता के अनेक प्रमाण उपलब्ध हैं। सांख्य के विचारों का संकेत