________________
कविवर द्यानतराय के साहित्य में प्रतिबिम्बित अध्यात्म चेतना
97
कहा जाता है। ये जीव मोक्ष के लिए प्रयत्नशील रहते हैं । ऐसे जीव जो सब लोकों में अपनी इच्छानुसार विचरण करते हैं, मुक्त जीव कहलाते हैं । नित्य जीव वे हैं, जो संसार में कभी नहीं आते हैं, इनका ज्ञान कभी क्षीण नहीं होता है। इस प्रकार उपर्युक्त सभी विद्वानों ने अपने-अपने दर्शनों के अनुसार आत्मा को स्वीकार कर आत्मा को परिभाषित किया है। निश्चय ही बिना आत्मा की स्वीकृति के मोक्ष होना सम्भव नहीं, अतः शाश्वत सुख की इच्छा रखनेवाले जीव को, आत्मा को जानकर मन को वश में करना चाहिए, तभी मोक्ष - - सुख को प्राप्त किया जा सकता है।
4. अध्यात्म का महत्त्व
आत्मा का त्रैकालिक स्वभाव ज्ञानानन्द है । उस ज्ञानानन्द स्वभाव को जानने, मानने और अनुभव करने का नाम ही धर्म है। इससे ही सच्चा सुख या निराकुलतारूप सुख प्राप्त होता है। संसार - भ्रमण से छुटकारा तभी मिलता है, जब जीव आत्मा का ज्ञान, श्रद्धान और आचरण करता है । आचार्य समन्तभद्र भी प्रतिज्ञा करते हुए कहते हैं कि
देशयामि समीचीनं धर्मं कर्मनिवर्हणम् । संसारदुःखतः सत्त्वान् यो धरत्युत्तमे सुखे । । --
--
अर्थात् एक धर्म ही है, जो हमें संसार के दुःखों से छुड़ाकर उत्तम सुख में स्थापित करता है। वर्तमान में जहाँ सम्पूर्ण विश्व विषय-वासनाओं से आक्रान्त है, हर जगह अशान्ति का बोलबाला है । आपसी वैमनस्य की बढ़ती चिन्गारी में एक अध्यात्म ही लोगों को शान्ति दिला सकता है। अध्यात्म का महत्त्व यही है कि सभी जीव संसार मार्ग से हटकर मोक्षमार्ग में लगे सभी अपने स्वतत्त्व को पहचान कर अतीन्द्रिय सुख को प्राप्त करें । विपरीत ज्ञान एवं मिथ्याज्ञान, जो मानव को संसार में आसक्त करता है, का निःशेषीकरण आध्यात्मिक तत्त्वज्ञान के द्वारा ही हो सकता है। इसके अतिरिक्त अध्यात्म शास्त्र आत्मज्ञान की ज्योति प्रज्वलित कर, अज्ञान के गाढ़ अन्धकार में मानव का पथ प्रदर्शन करते हैं 'किं कर्म किमकर्मेति कवयोऽप्यत्र मोहिताः' इस गीतोक्ति के अनुसार जब विद्वान भी कर्म और अकर्म के सही स्वरूप को नहीं जान पाते, तब अध्यात्म शास्त्रों के अध्ययन मनन से उत्पन्न होनेवाला विवेक ही हमें हमारे करणीय का उपदेश देता है।
अन्य सांसारिक उपायों की उपयोगिता का सम्बन्ध केवल धर्म, अर्थ