Book Title: Adhyatma Chetna
Author(s): Nitesh Shah
Publisher: Kundkund Kahan Tirth Suraksha Trust

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Page 194
________________ पंचम अध्याय द्यानतराय के काव्य में अभिव्यक्त कलापक्ष 'रसात्मकं वाक्यं काव्यम्' अर्थात् रसात्मक वाक्य को काव्य कहा जाता है और शास्त्र शब्द से तात्पर्य है-आदेश, धर्म, दर्शन, विज्ञान, साहित्य, कला आदि सम्बन्धी ग्रन्थ। जिनके द्वारा मानव समाज तथा जीवन के विभिन्न क्षेत्रों की स्थिति और रक्षा की प्रत्यक्ष अथवा परोक्ष रूप से शिक्षा मिलती है। शास्त्रीय शब्द का अभिप्राय है-शास्त्रसम्मत शास्त्रानुमोदित। काव्यशास्त्र वस्तुतः पारिभाषिक शब्द के रूप में व्यवहृत है। संस्कृत परम्परा में सम्पूर्ण वाङ्मय को शास्त्र तथा काव्य के दो स्वतन्त्र प्रकारों में विभाजित किया गया है। काव्यशास्त्रीय आचार्य राजशेखर ने काव्यविधा को पन्द्रहवाँ स्थान दिया है। चार–वेद, छह-वेदांग, चार-शास्त्र अर्थात् चौदह-विधाओं का एकमात्र आधार काव्यविधा को माना गया है। इस प्रकार काव्यशास्त्रीय शब्दयुग्म से अभिप्राय है-काव्यतत्त्वों-अंगों से सम्बन्धित मूल्यमान। इनमें भाव और कला दो प्रमुख पक्ष माने गये हैं। भावपक्ष में विषयबोध, रस निरूपण तथा प्रकृति-चित्रण सम्मिलित है; जबकि कलापक्ष में अलंकार, छन्द, भाषा-शैली आदि वे सभी तत्त्व समाविष्ट हैं, जिनके सहयोग से भावों में उत्कर्ष उत्पन्न होता है। इन सबका क्रमानुसार विवेचन निम्नांकित है (1) भाषा-कवि द्यानतराय ने अपने लेखन में प्रयुक्त भाषा को किसी विशेष नाम से सम्बोधित न करके मात्र 'भाषा' शब्द से अभिहित किया है। इस सम्बन्ध में उनके कथन दष्टव्य हैं - · · अक्षर ज्ञान न मोहि, छन्द भेद समझू नहीं। .." मति थोड़ी किम होय, भाषा अक्षर बाबनी।। कवि ने तत्कालीन भाषा में साहित्य की रचना इसलिए की, ताकि जो लोग बुद्धि की हीनता से संस्कृत भाषा में लिखे गये ग्रन्थों को नहीं पढ़ सकते हैं, वे देशभाषा में उन्हें पढ़ सकें। इसी कारण द्यानतराय ने देशभाषा में काव्य की रचना की। यह स्पष्ट है कि कवि ने धर्म भावना के कारण देशभाषा में अपने ग्रन्थों की रचना की है। इन रचनाओं में देशभाषा उनकी है तथा विषयवस्तु . परम्परागत है। देशभाषा से कवि का आशय तत्कालीन लोक प्रचलित विकासशील

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