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202 कविवर द्यानतराय के साहित्य में प्रतिबिम्बित अध्यात्म चेतना
तीन काल. तास वन्दि होत मौख भुप ।।" नमत मन वचन तन, सकल. मद मय हरन ।।+5 जिन जिनराय जिनन्द जगतपति, जग तारन जगमान।
परमातम परमेस परमगुरु, परमानन्द प्रधान ।। (2) पुनरुक्ति प्रकाश-जब शब्द की आवृत्ति हो, प्रत्येक बार अर्थ अभिन्न हो और अन्वय भी प्रत्येक बार अभिन्न हो। वहाँ पुनरुक्ति प्रकाश अलंकार होता है। कवि के काव्य में पुनरुक्ति प्रकाश अलंकार कई स्थानों पर मिलता है -
जै जै स्वामी आदिनाथ, देवों के देवा। जै जै स्वामी आदिनाथ, मैं कीनी सेवा।।8 वीतराग को धर्म, सर्व जीवन को तारन । वीतराग को धर्म, कर्म को कटै निवारन ।। वीतराग को धर्म, प्रगट क्रोधादिक नासै।
वीतराग को धर्म, ग्यान केवल परगासै ।। (3) यमके-जब कोई शब्द अनेक (दो या दो से अधिक) बार आये और अर्थ प्रत्येक बार भिन्न हो। कभी-कभी पूरा शब्द दुबारा न आकर उस शब्द का कुछ अंश दुबारा आता है, उस अवस्था में भी यमक होता है। द्यानतराय के काव्य में यमक अलंकार का उदाहरण दृष्टव्य है -
महावीर महावीर, धीर पर पीर निवारन । बड़े पुष्प संसार, सार संपति सुख कारन ।। आप भजत अघ भजत भजत सब दौष भयंकर ।।"
पंचन को पीछे चले, पंच वही सिरदार ।।52 (4) श्लेष-जब वाक्य में एक से अधिक अर्थवाले शब्द या शब्दों का प्रयोग किया जाय और इस प्रकार एक से अधिक अर्थों का बोध कराया जाये। द्यानतराय के काव्य में यह अलंकार अवलोकनीय है. कर भाजन कूआ निकट, गुन विन लहै न नीर।
सौ गुन क्यों नहि धारिये, जो बुधि होय शरीर।। (5) उपमा-उपमा में किसी वस्तु को दूसरी वस्तु के समान बताया जाता है। दोनों वस्तुओं में कोई साधारण धर्म अर्थात् ऐसा गुण होता है, जो दोनों में पाया जाता है। उस साधारण धर्म के कारण दोनों में समानता बतायी जाती है। उपमा में उपमेय, उपमान, धर्म और वाचक शब्द चार तत्त्व