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कविवर द्यानतराय के साहित्य में प्रतिबिम्बित अध्यात्म चेतना तहाँ पिछतात सिर धुनै यौं ही उपदेश शतक-24
4. अंधे के हाथ बटेर लगना जिम छांडत अंध बटेर गहिको
3. सिर धुनना
उपदेश शतक-29
5. कथनी और करनी में अंतर कोटि जनम कथनी कथै करनी बिन
दुखिया |
अध्यात्म पद संग्रह, भजन - 52, पृ. - 30 कहा भयो बक ध्यान धरै तै, अध्यात्म पद संग्रह, भजन - 43, पृ. - 30 मृग जल बुध ज्यौ धाए,
हिन्दी पद संग्रह, भजन - 129,पृ. 109 पाय अमृत पाँव धोवे
हिन्दी पद संग्रह, पृ. 116 पाप उदय लखि रोवत भोंदू द्यानतविलास, 48
विषय प्रगट विष बेल है, इनमें जिन अटकै द्यानतविलास, 5
जैसे बिना एकड़े बिन्दी, द्यानतविलास, 38 गूँगे का गुड़ खाय कहैं किमि,
वही,
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आँख की पलक मान साता तौ तहाँ न
6. बगुला ध्यान धरना
7. मृग- जल
8. अमृत से पाँव धोना
9. भोंदू होना
10. विष की बेल होना
11. बिना एकडें की बिन्दी 12. गूंगे का गुड़ खाना
13. पलक झपकना
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जान, उपदेशशतक, 51
14. आँखें मूँदना
तिन्हें सुचि मानै आँख मूँदी
उपदेशशतक, 60
15. कूप मंडूक होना
जानै नाहिं ग्यान सर कूपकै से भेक है उपदेशशतक, 109
मुहावरों की भाँति लेखक ने अपने काव्य में कहावतों का भी प्रयोग किया है । द्यानत साहित्य में व्यवहृत कहावतें निम्नलिखित हैं
1) फिर पछताय होय क्या, जब चिड़िया चुग गईं खेत । बहते पानी हाथ न धोवै, फिरि पछिताय होय का सार ।।
दान बावनी, 19