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कविवर द्यानतराय के साहित्य में प्रतिबिम्बित अध्यात्म चेतना
द्यानतराय द्वारा प्रयुक्त सर्वनाम निम्नांकित हैं -
1. उत्तमपुरुष एकवचन - में, हों, मोहि, मो, मेरे, मुझको, मोंको, मेरो, मोकूं, मेरा, मेरी, मेरो, मेरा, मेरयो, हमारे, हमार, हमारा ।
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2. उत्तमपुरुष बहुवचन - हम, निज, अपने, हमको, हमकों, हमारा, हमारे हमारो ।
3. मध्यमपुरुष एकवचन - तू तू, तैं, तूने, तुम, ता, तोकूँ, तोहि, तेरो, तेरा, तेरे ।
4. मध्यमपुरुष बहुवचन- तुम, तुमको, तुमकों, तुमकूँ, तुम्हारा, तुमारे, तुमको, तुमकौं ।
5. अन्य पुरुष एकवचन - सो, वा, वह, ता, तिस, जा, जे, जिस, इस, या, यहि, यहु, यह, जो, जिहि, कोउ, कोऊ, ताको, ताकों, ताहि, जाको, जाको, जाका, याकों, ताकूँ, ताका, ताके, ताकी, ताकै, जाका, जाकै, जाकी, जाकें, याका, याके, याकी, याकै, वाकै ।
6. अन्य पुरुष बहुवचन - तै, तेई, तिन, तिनि, जै, वे इन, उन, ए, केई, सर्व, सब, तिन्हे, त्यों, तिनको, बा, बिन, उनही, ये, इन इह, येही, याते, इहु, यहैं, एते, जिनको जिनकौ, तिनको, तिनकौ, इनको, सबनिकूँ सबकूँ, तिनका, तिनिका, तिनिकै, जिनका, जिनके, जिनकै, इनका इनकै, उनका, उनकी, उनकै, सबका, सबनिका आदि ।
(1) कारक एवं विभक्तियाँ
हिन्दी व्याकरण की दृष्टि से मीमांसा करने वाले ग्रन्थों में कारक और विभक्तियों के सम्बन्ध में बहुत भ्रम है। कारक और विभक्ति दो अलग-अलग चीजें हैं। कारकों का सम्बन्ध क्रिया से है। वाक्य में प्रयुक्त विभिन्न पदों का क्रिया से जो सम्बन्ध है, उसे कारक कहते हैं। इन प्रयुक्त पदों का आपसी सम्बन्ध भी क्रिया के माध्यम से होता है । उनका क्रिया से निरपेक्ष स्वतन्त्र सम्बन्ध नहीं होता। इस प्रकार वाक्यं रचना की प्रक्रिया में कारक एक पद का दूसरे पद से सम्बन्ध तत्त्व का बोधक है अर्थात् वह यह बताता है कि वाक्य में एक पद का दूसरे पद से क्या सम्बन्ध है । भाषा में इस सम्बन्ध को बतानेवाली व्यवस्था विभक्ति कहलाती है अर्थात् जिन प्रत्ययों या शब्द से इस सम्बन्ध की पहचान होती है, उसे विभक्ति कहते हैं । इस प्रकार विभक्ति और कारक छह माने हैं। इसमें एक-एक कारक के लिए एक-एक विभक्तियाँ सुनिश्चित कर दी गयी हैं । यथा - कर्ता-प्रथमा, कर्म - द्वितीया, करण - तृतीया, सम्प्रदान-चतुर्थी, अपादान - पंचमी, अधिकरण- सप्तमी । षष्ठी