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कविवर द्यानतराय के साहित्य में प्रतिबिम्बित अध्यात्म चेतना
रामकली, जांसवरी, धनाक्षरी, ललित भैरव, मल्हार, बसन्त आदि राग-रागनियों का प्रयोग किया है ।
द्यानतराय द्वारा प्रयुक्त छन्दों का विवेचन क्रमशः निम्नलिखित है(1) दोहा - यह मात्रिक अर्द्धसम छन्द होता है, जिसमें कुल 48 मात्रायें होती हैं। इसके पहले एवं तीसरे अर्थात् विषम चरणों में प्रत्येक में 13-13 मात्रायें तथा दूसरे और चौथे अर्थात् सम चरणों में 11-11 मात्रायें होती हैं और अन्त में तुक मिलती है। इसके पहले और तीसरे चरणों के अन्त में गुरु-लघु न हों। सम चरणों के अन्त में गुरु-लघु हों ।
संस्कृत में श्लोक और प्राकृत में गाथा के समान अपभ्रंश में दोहा होता है । दोहा अपभ्रंश का अपना छन्द है, जिसे आरम्भ में 'देहा' कहा गया है। हिन्दी तक आते-आते यह छन्द 'दोहा' आदि रूपों में व्यवहृत हुआ है। हिन्दी साहित्य में प्रबन्ध एवं मुक्तक दोनों ही प्रकार की रचनाओं में दोहा छन्द का प्रयोग हुआ है
द्यानतराय ने भी इस छन्द का प्रयोग अपने साहित्य में खूब किया है । द्यानतराय ने सभी पूजनों में स्थापना व जयमाला के अन्त में दोहा छन्द का प्रयोग किया है । .
यथा ( पूजन के प्रारम्भ में दोहा छन्द का प्रयोग )
जनम जरा मृतु छय करै, हरै कुनय जड़रीति । भवसागर सौं ले तिरै, पूजैं जिन वच प्रीति । । " ( जयमाला के अन्त में दोहे छन्द का प्रयोग)
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जा वाणी के ज्ञान तैं, सूझे लोक - अलोक । 'द्यानत' जग जयवन्त हो, सदा देत हों धोक | 120
द्यानत साहित्य में दोहा छन्द का प्रयोग हिन्दी की परम्परा के अनुसार ही हुआ है । द्यानतराय ने दोहे का प्रयोग भक्ति, उपदेश, अध्यात्म, दर्शन आदि के वर्णन में किया है।
(2) चौपाई - यह मात्रिक समं छन्द है । इसके प्रत्येक चरण में सोलह मात्रायें होती हैं । अन्त में जगण या तगण नहीं होता तथा कम से कम दो चरणों की तुक मिलती है। इसका विकास प्राकृत एवं अपभ्रंश के सोलह मात्रा वाले वर्णात्मक छन्द से हुआ है ।
हिन्दी साहित्य में प्राचीन काल से ही चौपाई छन्द का प्रयोग