Book Title: Adhyatma Chetna
Author(s): Nitesh Shah
Publisher: Kundkund Kahan Tirth Suraksha Trust

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Page 206
________________ कविवर द्यानतराय के साहित्य में प्रतिबिम्बित अध्यात्म चेतना 195 आच्छादित होती है। अतः छन्द कवि की आत्मा की लयात्मक अभिव्यक्ति है। वीरगाथा काल में प्राकृत भाषा में दोहा, पद्धरिया और डिल्ला आदि छन्दों का प्रचलन रहा। इसके अतिरिक्त रासों में रोला और छह पद का भी प्रयोग हुआ। भक्तिकालीन ज्ञानमार्गी कवियों ने सामान्यरूप से दोहा, सबद और रमैनी छन्दों में अपने भाव व्यक्त किये । प्रेममार्गी कवियों ने चौपाई और दोहा को अपने प्रबन्ध काव्यों का माध्यम बनाया। चौपाई में प्रबन्ध प्रवाह और लय परिवर्तन हुआ। सगुण भक्ति काव्य में हरिगीतिका सोरठा, रोला, छप्पय और सवैये का प्रयोग हुआ। तुलसीदास ने छन्द विधान की. सभी प्रचलित पद्धतियों को अपनाकर छन्दों का रूप परिष्कृत किया। सूरदास ने भी चौपाई, छप्पय, सोरठा, दोहा, दण्डक पद्धरि को अपनाकर छन्दों का रूप परिष्कृत किया है। रीतिकाल में भी वे ही छन्द प्रचलित हुए, जो आदिकाल और भक्तिकाल में प्रचलित थे। हिन्दी के भक्ति काव्य में पदों का बड़ा ही महत्त्वपूर्ण स्थान है। वैसे पदों के प्रधान रचयिताओं में कबीर, सूरदास, मीरा, तुलसीदास आदि उच्च कोटि के कवि माने गये हैं। महाकवि सूरदास के पदों को देखकर आचार्य रामचन्द्र षुक्ल ने इनका सम्बन्ध किसी प्राचीन परम्परा से होने का अनुमान किया है। डॉक्टर हजारी प्रसाद द्विवेदी ने इनका उपगम बौद्ध सिद्धों के गाने से माना है। पदों का मूल रूप कुछ भी हो, किन्तु भक्ति और अध्यात्म के क्षेत्र में जैन कवियों ने भी पदों का खुलकर प्रयोग किया है। जैन कवियों ने अपनी कविताओं में मात्रिक और वार्णिक दोनों ही प्रकार के छन्दों का प्रयोग किया है, किन्तु मात्रिक छन्दों की प्रधानता है; लेकिन जैन कवियों ने पदबन्धों के साथ-साथ दोहा, चौपाई, सोरठा, कवित्त, कुण्डलिया, सवैया, छप्पय आदि छन्दों का विशेष प्रयोग किया है। इनमें संगीतमयता से आध्यात्मिक रस बरसा है। जैन कवियों की छन्द योजना वैविध्यपूर्ण तो है ही, उसमें एक अनन्त संगीत की गूंज भी है, जो विभिन्न प्रकार की ढालों, रागिनियों आदि द्वारा हृदय के तार झंकृत कर देती है। इस प्रकार जैन कवियों ने अपनी कोमल पद रचना में लय, छन्द व राग-रागिनियों का सन्निवेष कर अनुभूति को अधिक आह्लादमय बनाने का प्रयास किया है। अपने पदों में रागात्मक अनुभूति की लयात्मक अभिव्यक्ति के लिए द्यानतराय ने बिहाड़ा, सारंग, विलावल, केवारी, सौरठ, गौड़ी,

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