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194 कविवर द्यानतराय के साहित्य में प्रतिबिम्बित अध्यात्म चेतना
कविता में छन्दों का उपयोग और महत्त्व -
आजकल कविता में छन्द बन्धन को भावों की स्वतन्त्र अभिव्यक्ति में बाधक मानकर उसे अनिवार्य नहीं माना जाता है, फिर भी कविता में छन्दों के महत्त्व और उपयोग को नकारा नहीं जा सकता है; क्योंकि -
1) छन्द भावों की अभिव्यक्ति को स्पष्टतः और तीव्रतर रूप में प्रस्तुत करते हैं।
2) छन्द भावों को बिखरने से रोकते हैं और उनमें एक समता स्थापित करते हैं।
3) छन्द से कविता में सजीवता, रमणीयता, सौन्दर्य तथा प्रभाव की प्रतिष्ठा होती है।
4) छन्द कविता में प्रेशणीयता लाकर रस निष्पत्ति में योगदान देते हैं।
5) छन्दबद्ध रचना शीघ्र याद हो जाती है और चिरकाल तक स्मृति में बनी रहती है। .
6) वेदों का स्वरूप छन्दबद्ध होने से ही अक्षुण्ण रहा है। छन्द दो प्रकार के होते हैं - वार्णिक एवं मात्रिक ।
मध्यकालीन कवियों ने दोनों प्रकार के छन्दों का प्रयोग किया है। द्यानतराय ने वार्णिक एवं मात्रिक दोनों प्रकार के छन्दों का प्रयोग किया है। वार्णिक छन्दों में चामर, मत्तगयन्द, सवैया, दुर्मिल सवैया एवं मनहर कवित्त - इन चार छन्दों का तथा मात्रिक छन्दों में दोहा, चौपाई, सोरठा, अडिल्ल, पद्धरि, छप्पय, कुण्डलिया, आर्या, घत्ता, त्रिभंगी, हलाल, हरिगीतिका और रोला इन तेरह छन्दों का प्रयोग हुआ है।
काव्य में अन्तर्निहित भावों की अभिव्यक्ति के लिए स्वर के आरोह व अवरोह की आवश्यकता होती है। भाषा की सजीव अभिव्यक्ति के लिए नादसौन्दर्य को उच्च, नम्र, समतल, विस्तृत और सरस बनाने के लिए अनुभूतियों व चिन्तन को प्रभावी बनाने के लिए भाषा की लाक्षणिकता बनाने हेतु एवं आत्मविभोर करने या होने के लिए छन्द योजना आवश्यक है।
प्रभावपूर्ण लयात्मक अभिव्यक्ति जो वर्ण, मात्रा, गति और तुक के नियमों से परिचालित हो, छन्द कहलाती है। बाह्य जीवन और जगत की बहुत-सी घटनायें हमारी आत्मा को प्रभावित करती हैं, जिसकी प्रतिक्रिया स्वरूप लयात्मक अभिव्यक्ति उत्पन्न होती है। यही लयात्मक अभिव्यक्ति छन्द का रूप है। लय कवि की अभिव्यक्ति और अनुभूति दोनों पर