Book Title: Adhyatma Chetna
Author(s): Nitesh Shah
Publisher: Kundkund Kahan Tirth Suraksha Trust

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Page 202
________________ कविवर द्यानतराय के साहित्य में प्रतिबिम्बित अध्यात्म चेतना 191 के सम्बन्ध में उनका स्पष्ट निर्देश है- 'शेषे षष्ठी' । सम्बन्ध को बताने के अतिरिक्त दूसरे कारकों को बताने के लिए भी षष्ठी का प्रयोग किया जा सकता है। 'शेषे षष्ठी का अभिप्राय यही है, परन्तु हिन्दी के व्याकरण में सम्बन्ध को कारक मान लिया गया है और उसके लिए षष्ठी विभक्ति सुनिश्चित कर दी गयी है । इसी प्रकार सम्बोधन को भी एक विभक्ति दी जाती है; जो कि वास्तव में गलत है। जहाँ तक कारकों के ऐतिहासिक विकास का सम्बन्ध है, कारकों की स्थिति प्रत्येक भाषा में अपरिवर्तनशील है; क्योंकि उनका सम्बन्ध वाक्यों में प्रयुक्त पदों की विवक्षा से है। हाँ, इस विवक्षा को बताने वाली भाषायी व्यवस्था में विनिमय या परिवर्तन सम्भव है। उदाहरण के लिए जब हम कहते हैं कि संस्कृत के बाद प्राकृत में- अपभ्रंश में कर्ता, कर्म और सम्बन्ध की विभक्तियों का लोप हो गया तो इसका अर्थ यह नहीं कि इन कारकों का लोप हो गया है। कारक तो ज्यों के त्यों हैं। हाँ, उनकी सूचक विभक्तियों के प्रत्ययों का लोप हो गया अर्थात् बिना भाषा सम्बन्धी प्रत्ययों के उनके कारक तत्त्व का प्रत्यय ज्ञान हो जाता है। 1. कर्ताकारक - द्यानतराय के साहित्य में कर्ताकारक का प्रयोग 'ने' चिह्न के लोप के रूप में मिलता है । यथा द्यानत कीज्यो शिव खेत भूमि समरपतु हों । द्यानत लीनों नाम यही भगति शिव सुख करै । 110 2. कर्म कारक कर्म कारक के प्रयोग में कहीं-कहीं - को, कौ, पै, कै, सो प्रत्ययों का प्रयोग मिलता है । यथा- पुरुष को, आतम को, को, देबन कौ, चरण कौ, मन कौ, प्रेम कौ, जिय कौ आदि । सब प्रतिमा 3. करण कारक-करण कारक के प्रयोग 'सौ' प्रत्यय से युक्त पाये जाते हैं तथा इस नियम के यत्र-तत्र अपवाद भी दृष्टव्य हैं । यथा जिनसौं मिलना फेर बिछरना तिनसौ केसी यारी । 11 4. सम्प्रदान कारक सम्प्रदान कारक में कौं, सौ, कौं आदि चिह्नों का प्रयोग पाया जाता है । यथा या जग माहिं तुझे तारन को, कारन नाव बखानी । द्यानत सो गहिये निहचै सैं, हुजे ज्यों शिवथानी || 12 5. अपादान कारक अपादान कारक में सों, तें चिह्न पाये जाते हैं । जिन परिणामनि बन्ध होत सों परिणति तज दुखदायी । 13 6. सम्बन्ध कारक इस कारक के चिह्न का, की, के, कै, कौ हैं, यथा — - — - - _

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