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110 कविवर द्यानतराय के साहित्य में प्रतिबिम्बित अध्यात्म चेतना
11. रस नामकर्म - 5 1. नामकर्म 2. कडुवा नामकर्म 3. कसैला नामकर्म 4. आम्ल नामकर्म 5. मधुर नामकर्म 12. स्पर्श नामकर्म - 8
1 कर्कश स्पर्श नामकर्म 2 मृदु स्पर्श नामकर्म 3 गुरु स्पर्श नामकर्म 4 लघु स्पर्श नामकर्म 5 शीत स्पर्श नामकर्म 6 उष्ण स्पर्श नामकर्म 7 स्निग्ध स्पर्श नामकर्म 8 रूक्ष स्पर्श नामकर्म
13. आनुपूर्वी नामकर्म - 4
1 नरकगति प्रायोग्यानुपूर्वी नामकर्म 2 तिर्यंचगति प्रायोग्यानुपूर्वी नामकर्म 3 मनुष्यगति प्रायोग्यानुपूर्वी नामकर्म 4 देवगति प्रायोग्यानुपूर्वी नामकर्म
शेषअगुरुलघु नामकर्म, उपघात नामकर्म, उच्छवास नामकर्म, आतप नामकर्म, उघोत नामकर्म, विहायोगति नामकर्म, त्रस नामकर्म, बादर नामकर्म, पर्याप्ति नामकर्म, प्रत्येक शरीर नामकर्म, स्थिर नामकर्म, शुभ नामकर्म, सुभग नामकर्म, सुस्वर नामकर्म, तीर्थंकर नामकर्म, स्थावर नामकर्म, सूक्ष्म नामकर्म, अपर्याप्ति नामकर्म, साधारण नामकर्म, अस्थिर नामकर्म, अशुभ नामकर्म, दुर्भग नामकर्म, दुःस्वर नामकर्म, अनादेय नामकर्म, अयशःकीर्ति नामकर्म ।
(7) गोत्र नामकर्म - 2 1. उच्चगोत्र- जिसके उदय से पूजित (मान्य) कुल में जन्म हो। 2. नीचगोत्र-जिसके उदय से लोक निन्दित कुल में जन्म हो। (8) अन्तराय कर्म- यह पाँच प्रकार का है - 1. दानांतराय- जिसके उदय से दान देना चाहे, किन्तु दे नहीं सके। 2. लाभांतराय- जिसके उदय से लाभ की इच्छा करे, पर लाभ न हो।
3. भोगांतराय- जिसके उदय से पुष्पादिक या अन्नादिक भोग की वस्तुएँ भोगना चाहे, किन्तु भोग न सके। ___4. उपभोगांतराय- जिसके उदय से स्त्री वगैरह उपभोग्य वस्तु का उपभोग न हो सके।
5. वीर्यान्तराय- जिसके उदय से अपनी शक्ति (बल) प्रकट करना चाहे, किन्तु प्रगट न हो सके।
अन्तराय कर्म का वर्णन करते हुए द्यानतरायजी लिखते हैं कि -
देव पै परयौ है पर रूपको न ग्यान होय, जैसे दरबान भू-देखनौ निवारै है।