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कविवर द्यानतराय के साहित्य में प्रतिबिम्बित अध्यात्म चेतना सम्यक् कमल अष्टदल गुण हैं, सुमन भँवर अधिकारी । संजम शील आदि पल्लव हैं कमला सुमति निवासी । सुजस सुवास, कमल परिचय तैं परसत भ्रम तम नासी ।। भव मल जात न्हात भविजन का होत परम सुख ज्ञाता । 'द्यानत' यह सर और न जानैं, जानें विरला ज्ञाता || 4 || 100
सम्यग्ज्ञान से ही चारित्र सम्यक्चारित्र नाम पाता है, बिना सम्यग्ज्ञान के सारे व्रत, तप, संयम आदि व्यर्थ हैं । शास्त्रों में उसे बालतप भी कहा है। द्यानतराय भी सम्यग्ज्ञान को सम्यक्चारित्र का आवश्यक कारण बताते हुए लिखते हैं
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तेती । ।
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वेती ।
कारजं एक ब्रह्म ही सेती टेक ।। अंग संग नहि बहिर भूत सब धन दारा सामग्री सोल सुरग नवग्रैविक में दुख सुखित सात में ततका जा शिव कारन मुनिगन ध्यावैं सो तेरे घर आनन्द खेती । । दान शील जप तप व्रत पूजा अफल ज्ञान बिन किरिया केती । पंच दख तोते नित न्यारे न्यारी राग द्वेष विधि जेती । । तू अदिनाशी जग पर कासी 'द्यानत' भासी सुकला वेति । ते जौ लाल मन के विकलप सब अनुभव मगन सुविद्या एती । । 101 इस प्रकार द्यानतरायजी ने सम्यग्ज्ञान की महिमा गाकर सम्यग्ज्ञान को संशय, विपर्यय, अनध्यवसाय से पृथक् बताकर सर्वश्रेष्ठ ज्ञान बताया है। इसको ही सम्यक्चारित्र का सहचारी कहा है ।
(3) सम्यक्चारित्र - सम्यग्ज्ञान को आचरण में लाना ही सम्यक्चारित्र है। संयम, त्याग, इन्द्रिय निग्रह और शुद्ध आचरण चारित्र कहलाता है । साधुओं के पाँच महाव्रत, दश यतिधर्म, सत्रह प्रकार का संयम और श्रावक के बारह व्रत सम्यक्चारित्र के ही अन्तर्गत है । चारित्र दो प्रकार का होता है, सर्वत्याग और आंशिक या देशत्याग । साधुओं का त्याग सर्वत्याग एवं गृहस्थों का त्याग आंशिक या देश त्याग कहा जाता है।
हिंसा, असत्य, चौर्य, अब्रह्मचर्य और परिग्रह - इन पाँच आस्रवों का त्याग, शब्द, रूप, रस, गन्ध एवं स्पर्श इन्द्रियों के इन पाँचों प्रकारों में आसक्त न होना, क्रोध, मान, माया, लोभ इन चारों कषायों का दमन या क्षय करना एवं मन, वचन और काया की अशुभ प्रवृत्तियों का निवारण करना, यही सत्रह प्रकार का चारित्र है ।