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कविवर द्यानतराय के साहित्य में प्रतिबिम्बित अध्यात्म चेतना:169
इस प्रकार द्यानतराय ने सातों तत्त्वों का वर्णन कर हेय ज्ञेय व उपादेय तत्त्व बताकर मोक्ष सुख प्राप्त करने की प्रेरणा दी है। ...
(2) छह द्रव्यों का निरूपण-सत् द्रव्य का : लक्षण. है। सत् अस्तित्व का वाची है। लोक में जितने भी अस्तित्ववान पदार्थ हैं, सब सत् हैं। सत् उत्पाद, व्यय और ध्रौव्य से युक्त रहता है। उत्पाद-उत्पन्न होना, व्यय-विनाश होना, ध्रौव्य-स्थायित्व होना-ये तीनों बातें प्रत्येक सत् में युगपत् घटित होती हैं। लोक में जितने भी पदार्थ हैं, सब परिणमनशील हैं। उनमें प्रति समय नयी-नयी अवस्थाओं की उत्पत्ति होती रहती है, नयी-नयी अवस्थाओं की उत्पत्ति के साथ ही पूर्व-पूर्व. की अवस्थाओं का विनाश भी होता है, यह उसका उत्पाद-व्यय है। पूर्वावस्था के विनाश और नयी अवस्था की उत्पत्ति के बाद भी पदार्थ में स्थायित्व बना रहता है, यह अवस्थिति ही ध्रौव्य है। दूध से दही बना, दूध का विनाश हुआ, दही का उत्पाद हुआ तथा गोरस ध्रौव्य रहा।
___ उत्पाद और व्यय दोनों क्षण-क्षयी हैं, विनाशीक हैं तथा ध्रौव्य स्थिरता का द्योतक है, अतः उत्पाद और व्यय पर्याय है, ध्रौव्य गुण है। इस प्रकार द्रव्य को उत्पाद-व्यय-ध्रौव्य लक्षणवाला कहना अथवा गुण और पर्याय वाला कहना एक ही बात है।
द्रव्य छह प्रकार के हैं- जीव, पुद्गल, धर्म, अधर्म, आकाश, काल। द्यानतराय ने छह द्रव्यों के नाम गिनाते हुए प्रत्येक द्रव्य में विद्यमान गुणों का वर्णन किया है 15 छहों द्रव्यों की लोक में सत्ता का वर्णन करते हुए उन्होंने लिखा है कि छहों द्रव्य तीनों लोकों में भरे हुए हैं।88 . . .:.
(3) आत्मतत्त्व का वर्णन-द्यानतरायजी ने आत्मा की महिमा गाते हुए उसे किसी भी प्रकार से प्राप्त करने की बात कही है। वे आत्मा को जानने को प्रेरित करते हुए लिखते हैं -
आतम जानो रे भाई।। जैसी उज्ज्वल आरसी रे, तैसी आतम जोत । काया करमन सौं जुदी रे; सबको करै उदोत।। . शयन दशा जागृत दशा रे, दोनों विकलप रूप। निर-विकलप शुद्धातमा रे, चिदानन्द चिद्रूप।।
तन बच सेती: भिन्न कर रे, मन सौं निज लवलाय। ... आप आप जब अनुभवै रे, तहा न मन वचकाय।।