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कविवर द्यानतराय के साहित्य में प्रतिबिम्बित अध्यात्म चेतना 65 है। सांख्य दर्शन का सम्बन्ध ‘संख्या से होने के कारण ही इसे सांख्य कहा . जाता है।
सांख्य दर्शन में तत्त्वों की संख्या पच्चीस बतलायी गयी है। 'भगवद्गीता' में इस दर्शन को तत्त्व-गणन या तत्त्व-संख्या कहा गया है। इन दो विचारों के अतिरिक्त एक तीसरा विचार है, जिसके अनुसार सांख्य को सांख्य कहे जाने का कारण सांख्य के प्रणेता का नाम. "संख' होना बतलाया जाता है; परन्तु यह विचार निराधार प्रतीत होता है, क्योंकि सांख्य-दर्शन के प्रणेता 'संख' का कोई प्रमाण नहीं है। महर्षि कपिल को छोड़कर अन्य को सांख्य का प्रवर्तक कहना भ्रान्तिमूलक है। सांख्य दर्शन में आत्मा का स्वरूप
___ सांख्य दर्शन दो तत्त्वों को अंगीकार करता है। प्रथम तत्त्व प्रकृति तथा द्वितीय पुरुष । पुरुष का अध्ययन करने के पूर्व प्रकृति और पुरुष की भिन्नता की ओर ध्यान देना वांछनीय होगा। पुरुष चेतन है, जबकि प्रकृति अचेतन है। पुरुष सत्त्व, रजस् और तमस से शून्य है जबकि प्रकृति सत्त्व, रजस् और तमस् से अलंकृत है, इसलिए पुरुष को त्रिगुणतीत और प्रकृति को त्रिगुणमयी कहा गया है। पुरुष ज्ञाता है, जबकि प्रकृति ज्ञान का विषय है। पुरुष निष्क्रिय है, जबकि प्रकृति सक्रिय है। पुरुष अनेक हैं, जबकि प्रकृति एक है। पुरुष कार्य-कारण से मुक्त है, जबकि प्रकृति कारण है। पुरुष अपरिवर्तन शील है, जबकि प्रकृति परिवर्तनशील है। पुरुष विवेकी है, परन्तु प्रकृति अविवेकी है। पुरुष अपरिणामी-नित्य है, परन्तु प्रकृति परिणामी-नित्य है।
जिस सत्ता को अधिकांशतः भारतीय दार्शनिकों ने आत्मा कहा है, उसी सत्ता को सांख्य ने पुरुष की संज्ञा से विभूषित किया है। पुरुष और आत्मा इस प्रकार एक ही तत्त्व के विभिन्न नाम हैं।
पुरुष की सत्ता स्वयं सिद्ध है। इस सत्ता का खण्डन करना असम्भव है। यदि पुरुष की सत्ता का खण्डन किया जाए तो उसकी सत्ता खण्डन के निषेध में ही निहित है, अतः पुरुष का अस्तित्व संशय. रहित है।
सांख्य ने पुरुष को शुद्ध चैतन्य माना है। चैतन्य आत्मा में सर्वदा निवास करता है। आत्मा को जागृत अवस्था, स्वप्नावस्था या सुषुप्तावस्था में से किसी भी अवस्था में माना जाए, उसमें चैतन्य वर्तमान रहता है।