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कविवर द्यानतराय के साहित्य में प्रतिबिम्बित अध्यात्म चेतना' विश्व का उपादान कारण है। इस बात को विज्ञानभिक्षु और वाचस्पति मिश्र ने प्रामाणिकता दी है ।
योगदर्शन में ईश्वर को दयालु, अन्तर्यामी, वेदों का प्रणेता, धर्म, ज्ञान और ऐश्वर्य का स्वामी माना गया है। ईश्वर को ऋषियों का गुरु मांना गया है। योगमार्ग में जो रुकावटें आती हैं, उन्हें ईश्वर दूर करता है । जो ईश्वर की भक्ति करते हैं, उन्हें ईश्वर सहायता प्रदान करता है। 'ओम्' ईश्वर का प्रतीक है ।
निष्कर्ष : योगदर्शन की अनमोल देन योग के अष्टांग मार्ग को कहा जाता है। यूँ तो भारत का प्रत्येक दर्शन किसी-न-किसी रूप में समाधि की आवश्यकता पर बल देता है, परन्तु योगदर्शन में समाधि को एक अनुशासन के रूप में चित्रित किया गया है। कुछ योग का अर्थ जादू-टोना समझकर योग-दर्शन के कटु आलोचक बन जाते हैं। योगदर्शन में योगाभ्यास की व्याख्या मोक्ष को अपनाने के उद्देश्य से ही की है। अतः हम कह सकते हैं कि योगदर्शन भी अध्यात्म को ही महत्त्व देता है ।
(छ) मीमांसा - दर्शन में अध्यात्म
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मीमांसा - दर्शन को आस्तिक दर्शन कहा जाता है। मीमांसा दर्शन सिर्फ वेद की प्रामाणिकता को ही नहीं मानता, बल्कि वेद पर पूर्णतः आधारित है। वेद के दो अंग हैं, वे हैं ज्ञानकाण्ड और कर्मकाण्ड । वेद के ज्ञानकाण्ड की मीमांसा वेदान्त दर्शन में हुई है, जबकि वेद के कर्मकाण्ड की मीमांसा, मीमांसा दर्शन में हुई है। यही कारण है कि मीमांसा और वेदान्त को सांख्य-दर्शन, न्याय-वैशेषिक की तरह समान कहा जाता है ।
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जैमिनी को मीमांसा - दर्शन का प्रणेता कहा जाता है तथा इसके दो सम्प्रदाय हैं - एक के प्रणेता कुमारिलभट्ट और दूसरे सम्प्रदाय के प्रणेता प्रभाकर मिश्र हैं।
मीमांसा दर्शन को तीन भागों में विभक्त किया जा सकता है (1) प्रमाण विचार, ( 2 ) तत्त्व विचार, (3) धर्म विचार | चूँकि अध्यात्म से सम्बन्धित धर्म विचार है, अतः यहाँ पर धर्म विचार का अध्ययन किया जाता है।
धर्म विचार
कर्मफल सिद्धान्त - कुछ मीमांसकों के मतानुसार स्वर्ग ही जीवन