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78. कविवर द्यानतराय के साहित्य में प्रतिबिम्बित अध्यात्म चेतना जिसके कारण दोनों दर्शनों को समान तन्त्र कहा जाता है। दोनों दर्शनों के अनुसार जीवन का मूल उद्देश्य मोक्षानुभूति प्राप्त करना है। सांख्य की तरह योग भी संसार को तीन प्रकार के दुःखों से परिपूर्ण मानता है। वे तीन प्रकार के दुःख हैं - '" (1) आध्यात्मिक दुःख (2) आधिभौतिक दुःख और (3) आधिदैविक दुःख। - मोक्ष का अर्थ इन तीन प्रकार के दुःखों से छुटकारा पाना है। बन्धन का कारण अविवेक है, इसलिए मोक्ष को अपनाने के लिए तत्त्वज्ञान को आवश्यक माना गया है। वस्तुओं के वास्तविक स्वरूप को जानकर ही मानव मुक्त हो सकता है। सांख्य के मतानुसार मोक्ष की प्राप्ति विवेक ज्ञान से ही सम्भव है, परन्तु योगदर्शन विवेक-ज्ञान की प्राप्ति के लिए योगाभ्यास को आवश्यक मानता है। इस प्रकार योग-दर्शन में सैद्धान्तिक ज्ञान के अतिरिक्त व्यावहारिक पक्ष पर भी जोर दिया गया है। ...... सांख्य और योगदर्शन को समान तन्त्र कहे जाने का कारण यह है कि योग और सांख्य दोनों के तत्त्व-शास्त्र एक हैं, योगदर्शन सांख्य के तत्त्व-विचार को अपनाता है। सांख्य के अनुसार तत्त्वों की संख्या पच्चीस है। सांख्य. के पच्चीस तत्त्वों दस बाह्य इन्द्रियाँ, तीन आन्तरिक इन्द्रियाँ, पंच तन्मात्रा, पंच महाभूत प्रकृति और पुरुष को योग भी मानता है। योग इन तत्त्वों में एक तत्त्व ईश्वर जोड़ देता है, जो योगदर्शन का छब्बीसवाँ तत्त्व है।
. . .अतः योग के मतानुसार तत्त्वों की संख्या छब्बीस है। योग इन तत्त्वों की व्याख्या सांख्य से अलग होकर नहीं करता है, बल्कि सांख्य के तत्त्वविचार को ज्यों का त्यों सिर्फ ईश्वर को जोड़कर मान लेता है। इस प्रकार योग-दर्शन तत्त्व-विचार के मामले में सांख्य-दर्शन पर आधारित है।
योगदर्शन के प्रमाण-शास्त्र को भी ज्यों का त्यों मान लेता है। सांख्य के मतानुसार प्रमाण तीन हैं। वह प्रत्यक्ष, अनुमान और शब्द को ज्ञान का साधन मानता है।
- सांख्य का विकासवादी सिद्धान्त योग को भी मान्य है, योग विश्व के निर्माण की व्याख्या प्रकृति से करता है। प्रकृति का ही रूपान्तर विश्व की विभिन्न वस्तुओं में होता है, अतः सांख्य प्रकृति-परिणामवाद को मानता है। समस्त विश्व अचेतन प्रकृति का वास्तविक रूपान्तर है।
जहाँ तक कार्य-कारण सिद्धान्त का सम्बन्ध है। योग-दर्शन सांख्य