________________
कविवर द्यानतराय के साहित्य में प्रतिबिम्बित अध्यात्म चेतना
73
अतः पुरुष का न बन्धन होता है और न मोक्ष होता है, बल्कि उसे बन्धन और मोक्ष का भ्रम हो जाता है ।
सांख्य की ईश्वर विषयक समस्या
ईश्वर के अस्तित्व के प्रश्न को लेकर सांख्य के टीकाकारों एवं समर्थकों में मतभेद है। कुछ विद्वानों का मत है कि सांख्य दर्शन अनीश्वरवाद का समर्थन करता है। इसके विपरीत कुछ अनुयायियों का मत है कि सांख्य दर्शन में ईश्वरवाद की मीमांसा की गई है । इस मत के माननेवाले विद्वानों का मत है कि सांख्य न्याय की तरह ईश्वरवाद का समर्थन करता है। इस प्रकार हम देखते हैं कि ईश्वर के प्रश्न को लेकर सांख्य के अनुयायियों के दो दल हो जाते हैं। अब हम एक-एक कर दोनों दलों के विद्वानों के मत का अध्ययन करेंगे ।
जिन विद्वानों में सांख्य में अनीश्वरवाद की झलक पायी जाती है । उनमें वाचस्पति मिश्र और अनिरुद्ध मुख्य हैं। इन लोगों का यह मत है कि सांख्य में ईश्वरवाद का खण्डन हुआ है । ईश्वरवाद का खण्डन सांख्य में इस प्रकार हुआ है
-
ईश्वर को प्रमाणित करने के लिए ईश्वरवादियों का कथन है किं संसार कार्य श्रृंखला है। अतः उसके कारण के रूप में ईश्वर को मानना अपेक्षित है। सांख्य, जहाँ तक विश्व को कार्य श्रृंखला मानने का प्रश्न है, . सहमत है; परन्तु वह ईश्वर के इस कार्य श्रृंखला का कारण मानने में विरोध करता है । विश्व का कारण वही हो सकता है, जो परिवर्तनशील एवं अनित्य हो । ईश्वर को नित्य तथा अपरिवर्तनशील माना जाता है तो ईश्वर का रूपान्तर विश्व के रूप में कैसे हो सकता है? परन्तु ईश्वर को विश्व के रूप में परिवर्तित होना आवश्यक है। अतः ईश्वर को विश्व का कारण मानना भ्रान्तिमूलक है। प्रकृति नित्य तथा परिणामी दोनों हैं । इसलिए समस्त विश्व प्रकृति का रूपान्तरित रूप कहा जा सकता है। महत् से लेकर पाँच स्थूलभूतों तक सब चीजें प्रकृति से निर्मित होती हैं । अतः विश्व का कारण. प्रकृति को मानना प्रमाण-संगत है
4
I
.
यहाँ पर आक्षेप किया जा सकता है कि प्रकृति जड़ है। अतः उसकी गति के संचालक और नियामक के रूप में चेतन सत्ता को मानना आवश्यक है। क्या वह चेतन सत्ता जीव है? उस चेतन सत्ता को जीव नहीं: