________________
कविवर द्यानतराय के साहित्य में प्रतिबिम्बित अध्यात्म चेतना 69 चैतन्य उसका स्वभाव है, क्योंकि चैतन्य के अभाव में पुरुष की कल्पना करना असम्भव है। इन सब लक्षणों के अतिरिक्त पुरुष का एक मुख्य लक्षण है और वह है, उसका मुक्त होना। पुरुष और प्रकृति के आकस्मिक सम्बन्ध से बन्धन का प्रादुर्भाव होता है।
पुरुष बुद्धि, अहंकार और मन से भिन्न है, परन्तु अज्ञान के कारण वह अपने को उन वस्तुओं से पृथक् नहीं समझ पाता है। इसके विपरीत वह बुद्धि या मन से अपने को अभिन्न समझने लगता है। सुख और दुख बुद्धि या मन में समाविष्ट होता है। पुरुष अपने को बुद्धि या मन से अभिन्न समझकर दुखों का अनुभव करता है। इसकी व्याख्या एक उपमा से की जा सकती है। जिस प्रकार सफेद स्फटिक लाल फूल की निकटता से लाल दिखाई देता है, उसीप्रकार नित्य और मुक्तपुरुष बुद्धि की, दुःख की छाया ग्रहण करने से बन्धनग्रस्त प्रतीत होता है। बुद्धि के सुख-दुःख को आत्मा निजी सुख-दुःख समझने लगती है। इसी स्थिति में पुरुष अपने को शरीर, बुद्धि, अहंकार, मन तथा इन्द्रियों से युक्त समझने लगता है तथा सुख-दुःख की अनुभूति स्वयं करने लगता है।
साधारणतः यह पाया जाता है कि एक पिता पुत्र की सफलता को अपनी सफलता तथा उसके अपमान को अपना अपमान समझता है। इस प्रकार पिता-पुत्र के सुख-दुःख के अनुकूल अपने को सुखी और दुःखी समझने लगता है। इस प्रकार आत्मा का अपने को बुद्धि से जो अनात्मा है, अभिन्न समझना बन्धन है।
__ आत्मा और प्रकृति अथवा अनात्मा के भेद का ज्ञान न रहना ही बन्धन है। इसका कारण अज्ञान अर्थात् अविवेक है। अज्ञान का अन्त ज्ञान से ही सम्भव है, अविवेक का निराकरण विवेक के द्वारा ही सम्भव है। जिस प्रकार अन्धकार का अन्त प्रकाश से होता है; उसी प्रकार अविवेक का अन्त विवेक से होता है, इसलिए सांख्य ने ज्ञान को मोक्ष का साधन माना है। ज्ञान के द्वारा ही आत्मा और अनात्मा का भेद विदित हो जाता है। सांख्य की तरह बुद्ध ने निर्वाण की प्राप्ति के लिए ज्ञान को अत्यन्त आवश्यक माना है, परन्तु दोनों दर्शनों में ज्ञान की व्याख्या को लेकर भेद है। बुद्ध के ज्ञान का अर्थ चार आर्य सत्यों का ज्ञान है, परन्तु सांख्य में ज्ञान का अर्थ आत्मा और अनात्मा के भेद का ज्ञान है।