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कविवर द्यानतराय के साहित्य में प्रतिबिम्बित अध्यात्म चेतना 57
बन्धन की अवस्था में आत्मा को सांसारिक दुःखों के अधीन रहना पड़ता है। बन्धन की अवस्था में आत्मा को निरन्तर जन्म ग्रहण करना पड़ता है। इस प्रकार जीवन के दुःखों को सहना तथा पुनः पुनः जन्म ग्रहण करना ही बन्धन है, बन्धन का अन्त मोक्ष है।
नैयायिकों के अनुसार मोक्ष दुःख के पूर्ण निरोध की अवस्था है। मोक्ष को अपवर्ग कहते हैं। अपवर्ग का अर्थ है-शरीर और इन्द्रियों के बन्धन से आत्मा का मुक्त होना, जब तक आत्मा शरीर, इन्द्रिय और मन ग्रसित रहती है तब तक उसे दुःख से पूर्ण छुटकारा नहीं मिल सकता है।28 गौतम ने दुःख के आत्यन्तिक उच्छेद को मोक्ष कहा हैं। हमें प्रगाढ़ निद्रा के समय, किसी रोग से विमुक्त होने पर दुःख से छुटकारा मिलता है, उसे मोक्ष नहीं कहा जा सकता है। इसका कारण यह है कि इन अवस्थाओं में दुःख से छुटकारा कुछ ही काल तक के लिए मिलता है, पुनः दुःख की अनुभूति होती है। मोक्ष इसके विपरीत दुःखों से हमेशा के लिए मुक्त हो जाने का नाम है।
नैयायिकों के मतानुसार मोक्ष एक ऐसी अवस्था है, जिसमें आत्मा के केवल दुःखों का ही अन्त नहीं होता है बल्कि उसके सुखों का भी अन्त हो जाता है। मोक्ष की अवस्था को आनन्दविहीन माना गया है। आनन्द सर्वदा दुःख से मिले रहते हैं। दुःख के अभाव में आनन्द का भी नाश हो जाता हैं।
कुछ नैयायिकों का कहना है कि आनन्द की प्राप्ति शरीर के माध्यम से होती है। मोक्ष में शरीर का नाश हो जाने से आनन्द का भी अभाव हो जाता है। इससे प्रमाणित होता है कि मोक्ष में आत्मा अपनी स्वाभाविक अवस्था में आ जाती है, वह सुख-दुःख से शून्य होकर बिलकुल अचेतन हो जाती है। किसी प्रकार की अनुभूति उसमें शेष नहीं रह जाती है। यह आत्मा की चरम अवस्था है। इसका वर्णन अभयम्, अजरम्, अमृत्युपदम् आदि अभावात्मक रूपों में हुआ है। अब प्रश्न उठता है कि मोक्ष प्राप्त करने के उपाय क्या हैं? नैयायिकों के अनुसार सांसारिक दुःखों या बन्धन का मूल कारण अज्ञान है।
___ अज्ञान का नाश तत्त्वज्ञान के द्वारा ही सम्भव है। तत्त्वज्ञान होने पर मिथ्याज्ञान स्वयं निवृत्त हो जाता है। जैसा रज्जु के ज्ञान से सर्प का ज्ञान स्वयं निवृत्त हो जाता है। शरीर को आत्मा समझना मिथ्याज्ञान है। इस